रेपो दर में 0.25 फीसद की कटौती, अर्थव्यवस्था को गति देने का प्रयास, वाहन-आवास ऋण सस्ता होगा!
आम चुनाव शुरू होने से पहले अर्थव्यवस्था को गति देने के प्रयास स्वरूप रिजर्व बैंक ने बृहस्पतिवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया।
रेपो दर में 0.25 फीसद की कटौती, अर्थव्यवस्था को गति देने का प्रयास |
रिजर्व बैंक ने लगातार दूसरी बार रेपो दर में कटौती की है। इससे बैंकों के धन की लागत कम होगी और वह आगे अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे पाएंगे। आने वाले दिनों में इससे मकान, वाहन और दूसरे कर्ज सस्ते हो सकते हैं।
केन्द्रीय बैंक ने हालांकि मानसून की स्थिति को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए मौद्रिक नीति रुख को तटस्थ बनाये रखा है। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2019- 20 के लिए आर्थिक वृद्धि का अनुमान 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7.2 प्रतिशत कर दिया। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता में हुई मौद्रिक नीति समिति की दूसरी बैठक में समिति के छह सदस्यों में से चार ने रेपो दर में कटौती के पक्ष में अपना मत दिया जबकि दो ने इसे स्थिर बनाए रखने को कहा।
केन्द्रीय बैंक ने मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चली बैठक के बाद बृहस्पतिवार को रेपो दर को तुरंत प्रभाव से 0.25 प्रतिशत घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया। इससे पहले रिजर्व बैंक ने फरवरी 2019 में हुई समीक्षा में इसे 6.50 से घटाकर 6.25 प्रतिशत किया था। इससे पहले अप्रैल 2018 में रेपो दर छह प्रतिशत पर थी। रेपो दरों में कमी से बैंकों के पास ज्यादा नकदी उपलब्ध होगी जिसकी वजह से वे सभी तरह के ऋणों पर ब्याज की दर घटा सकते हैं। रेपो दर वह दर होती है जिस पर रिजर्व बैंक दूसरे वाणिज्यक बैंकों को अल्पावधि के लिए नकदी उपलब्ध कराता है। इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर भी इसी अनुपात में घटकर 5.75 प्रतिशत और बैंकों के लिए सीमांत स्थायी सुविधा और बैंक दर को 6.25 प्रतिशत कर दिया।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रेपो दर में की गई कटौती मध्यम अवधि के लक्ष्य के अनुरूप की गई है। इस लक्ष्य में मुद्रास्फीति को चार प्रतिशत के दायरे में रखने के साथ साथ आर्थिक वृद्धि को समर्थन देना है। उन्होंने कहा कि उत्पादन फासला नकारात्मक बना हुआ है और घरेलू अर्थव्यवस्था के
समक्ष चुनौती बनी हुई है। खासतौर से वैश्विक मोच्रे पर यह चुनौतियां ज्यादा हैं। निजी निवेश को बढ़ावा देकर घरेलू आर्थिक वृद्धि को मजबूती देने की जरूरत है। निजी निवेश अभी भी धीमी गति पर बना हुआ है।
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