निकाले गए श्रमिक को रोजगार में प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छटनी के जरिए नौकरी से निकाले गए कर्मचारी को दोबारा नौकरी पर रखा जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट |
यदि नियोक्ता खाली जगहों को भरने के लिए वेकेंसी निकालता है तो छटनी के जरिए नौकरी से हटाए गए शख्स को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार दिया जाएगा। नियोक्ता को अपने पुराने कर्मचारी को नोटिस देकर नौकरी का प्रस्ताव देना पड़ेगा।
जस्टिस अभय मनोहर सप्रे और इंदु मल्होत्रा की बेंच ने बराड़ा सहकारी विपणन समिति की याचिका पर यह निर्णय दिया। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 (एच) में छटनी में निकाले गए श्रमिक के अधिकारों का विस्तृत उल्लेख है। नियोक्ता ने किसी कर्मचारी को छटनी के जरिए निकाला है और उसे छटनी के सभी लाभ प्रदान किए हैं तो दोबारा रिक्तता होने पर नौकरी से हटाए गए शख्स को नोटिस देकर आमंत्रित करना अनिवार्य है। छटनी के जरिए निकाले गए व्यक्ति से पूछना जरूरी है कि क्या वह फिर नौकरी करने का इच्छुक है। यदि वह नौकरी के प्रस्ताव को स्वीकार करता है तो उसे नए उम्मीदवारों के मुकाबले तरजीह दी जाएगी। उसे दोबारा नौकरी पर रखा जा सकता है। जिन लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किए हैं, उनके बजाए छटनी किए गए कर्मचारी को प्राथमिकता दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, औद्योगिक विवाद (केंद्रीय) नियमावली 1957 की धारा 78 में दोबारा रोजगार का अवसर प्रदान करने का विवरण दिया गया है। यह स्थिति उस समय पैदा होती है जब नियोक्ता नई भर्तियों के लिए आवेदन आमंत्रित करता है और इस सबंध में रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मौजूदा केस के तथ्य कुछ अलग हैं। विपणन समिति के कर्मचारी प्रताप सिंह को चपरासी के रूप में 1973 में भर्ती किया गया था। उसे 1985 में नौकरी से हटा दिया गया था। श्रम अदालत ने उसे नौकरी से हटाने के प्रबंधन के निर्णय को गलत बताया और कर्मचारी को एकमुश्त मुआवजा देने का आदेश दिया। लेबर कोर्ट ने 1988 में दिए गए निर्णय में मुआवजे की राशि 12 हजार 500 रुपए तय की। यह मुआवजा नौकरी पर बहाल करने के एवज में प्रदान किया गया। समिति और कर्मचारी ने श्रम अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनती दी। हाईकोर्ट ने दोनों की याचिकाओं को खारिज कर दिया। उसके बाद कर्मचारी ने 12 हजार 500 रुपए का मुआवजा स्वीकार कर लिया अर विपणन समिति ने इसका भुगतान भी कर दिया।
1993 में प्रताप सिंह ने विपणन समिति को दी अर्जी में कहा, समिति ने दो चपरासियों को नियमित किया है। लिहाजा उसे भी नौकरी पर फिर रखा जाए। लेबर कोर्ट ने उसकी अर्जी खारिज कर दी लेकिन हाई कोर्ट की एकल अर खंडपीठ ने चपरासी को दोबारा नौकरी पर रखने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प्रताप सिंह को छटनी के माध्यम से नहीं हटाया गया था। उसे बिना किसी वाजिब कारण के नौकरी से हटाया गया था। हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसने मुआवजा भी मंजूर कर लिया। ऐसे में उसे छटनी के जरिए हटाए गए कर्मचारी के बराबर का दर्जा नहीं दिया जा सकता। हालांकि हाईकोर्ट ने नकरी से हटाए जाने की कार्रवाई को गैरकानूनी कहा था लेकिन यह छटनी की श्रेणी में नहीं आता। इसलिए कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25(एच) के तहत छटनी का लाभ नहीं ले सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नियोक्ता ने नई भर्ती के जरिए नौकरी नहीं दी बल्कि दो कर्मचारियों की नकरी पक्की की जो पहले से कार्यरत थे। इसे नई भर्ती नहीं कहा जा सकता है। लेबर कोर्ट का फैसला सही था। सुप्रीम कोर्ट ने श्रम अदालत के निर्णय को बहाल कर दिया।
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