पान मसाला बेचने वाले 'कोठारी' ने ऐसे खड़ा किया करोड़ों का साम्राज्य
‘पान पराग’ और ‘रोटोमैक पेन’ के ब्राण्ड नेम को दुनिया तक फैलाने वाले कोठारी समूह की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
विक्रम कोठारी (फाइल फोटो) |
‘पान पराग’ और ‘रोटोमैक पेन’ के ब्राण्ड नेम को दुनिया तक फैलाने वाले देश के नामचीन बड़े अमीरों में से एक ‘कोठारी समूह’ पर आज भले ही कर्ज न चुका पाने का संकट है लेकिन सत्तर के दशक में बेहद मामूली दो-चार हजार रुपये की पूंजी से कारोबार शुरू करने वाले कोठारी समूह के संस्थापक मनसुख लाल महादेव भाई कोठारी (एमएम कोठारी) ने दिन-रात मेहनत कर अपने छोटे से कारोबार को लाखों-करोड़ों रुपये तक पहुंचाया था.
जैसा मनसुख भाई अपने जीवनकाल में बताते थे, उसके मुताबिक ‘पान पराग’ की शुरूआत उन्होंने सत्तर दशक के आरम्भ में की थी. जिसका आईडिया उन्हें तत्कालीन बम्बई में सर्विस करने के दौरान मिला था. उन दिनों वह पान खाने के शौकीन थे और बम्बई में पान की दूकान जल्दी ढूंढे नहीं मिलती थी. कई-कई किलोमीटर दूर जाकर वह पान खरीदकर खाते थे.
जिस जगह सर्विस करते थे, उसका ऑफिस कई मंजिला इमारत में था, उन्हें बार-बार नीचे भी उतरना पड़ता था. तभी उन्हें एक विचार आया, पान में पड़ने वाली सामग्री कत्था, चूना, सुपारी, इलायची आदि का पिसा हुआ मिश्रण साथ रखें.
इस तरह जब कानपुर आये तो पान मसाला उत्पाद की नींव रखी. शुरूआत में वह साइकिल पर झोले में लटका कर दूकान-दूकान पान मसाला बेचने जाते थे.
छोटी पुड़िया बनी अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड : पान पराग कम्पनी की बड़े व्यवसाय के रूप में नींव 18 अगस्त 1973 में पड़ी थी. उस समय स्वयं मनसुख भी नहीं जानते थे कि आगे यह प्रोडक्ट अंतराष्ट्रीय ब्राण्ड बन जाएगा. अपनी मेहनत के बल पर मनसुख भाई ने मात्र 10 वर्ष के भीतर पान पराग का विपणन संजाल देशव्यापी बना दिया और 1983 में ‘कोठारी प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की स्थापना कर दी.
उसके बाद टीवी, रेडियो और प्रिंट मीडिया में पान पराग का धुआंधार विज्ञापन अभियान चलाकर उन्होंने देखते ही देखते अपना कारोबार देश के बाहर भी पहुंचा दिया. उस समय टीवी पर पान पराग सबसे बड़ी अकेली विज्ञापनदाता कम्पनी थी. इसी दौरान कोठारी ने ‘बजट’ वाशिंग पाउडर और ‘यस मिनीरल वॉटर’ जैसे उत्पादन बनाने शुरू किए.
रोटोमैक पेन की नींव पड़ी 90 में : इसके बाद 1991-92 में कोठारी समूह ने अमरीकन तकनीकी पर आधारित ‘रोटोमैक’ पेन का उत्पादन शुरू किया. इसकी फैक्ट्री दादानगर-पनकी में स्थापित हुई. फुली आटोमैटिक फैक्ट्री के पेन उत्पादों में आगे चलकर तमाम नये किस्म के रोटोमैक पेनों का उत्पादन किया जाने लगा.
अपने दो बेटे विक्रम और दीपक कोठारी के साथ मनसुख भाई देश के सफलतम उद्योगपतियों में शुमार किए जाने लगे. तभी 90 वर्ष की उम्र में मनसुख भाई का देहांत हो गया. इसके बाद दोनों भाईयों ने आपस में बंटवारा कर लिया. जिसमें रोटोमैक विक्रम कोठारी के पास आयी और पान पराग दीपक कोठारी ने संभाला. दीपक कोठारी ने पान मसाला प्रोडक्ट कम्पनी की 22.5 प्रतिशत इक्विटी हिस्सेदारी खरीद ली. विक्रम ने फिर रोटोमैक को संभाला.
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