पानी नहीं बचा तो तय बर्बादी

Last Updated 16 Jun 2011 12:18:47 AM IST

यदि हम पानी की बर्बादी को तत्काल नहीं रोकेंगे तो खुद बर्बाद हो जाएंगे क्योंकि देश के अधिसंख्य इलाकों में भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है.


लिहाजा ग्राउण्ड वॉटर की समस्या खड़ी हो रही है. तमाम जगहों पर बढ़ते जल प्रदूषण से भी आम लोगों की दुश्वारियां बढ़ रही हैं. इसलिए चिंतन की आवश्यकता है कि पानी को कैसे बचाया जाए और पानी को बर्बाद होने से कैसे रोका जाए?

अमेरिका व इंग्लैण्ड सहित तमाम देश पानी पर शोध कर इसकी बर्बादी रोकने, पानी को अधिक उपयोगी बनाने, जल प्रदूषण पर अंकुश लगाने की लगातार कोशिशें कर रहे हैं. करीब एक दशक पहले अमेरिका ने टॉयलेट के पानी को अधिक उपयोगी बनाने की दिशा में शोध कर उस पर अमल किया. देश-दुनिया के छोटे-बड़े शहरों से लेकर गांव-गिरांव में पानी की बर्बादी रोकने की कोशिशें हो रही हैं. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के वैज्ञानिकों ने शोध कर शौचालय के पानी को और अधिक उपयोगी बनाने की कोशिशें की हैं. वैज्ञानिकों का प्रयास है जीरो डिस्चार्ज टॉयलेट का कल्चर लाने की जिससे मल-मूत्र से जैविक खाद बन सके और टॉयलेट के पानी को शोधित कर पुन: टॉयलेट में उपयोग किया जा सके.

फिलहाल, कोयम्बटूर और वाराणसी में जीरो डिस्चार्ज टॉयलेट का प्रयोग किया जा रहा है. सॉलिड एंड लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत इस कार्ययोजना पर कार्य किया जा रहा है. वैज्ञानिकों की मानें तो जीरो डिस्चार्ज टॉयलेट में 95 प्रतिशत पानी की बचत होगी. सामान्यत: एक भारतीय परिवार में सौ लीटर पानी प्रतिदिन शौचालय में बर्बाद हो जाता है जबकि पांच से छह लीटर पानी ही शौच में उपयोग आता है. इस तरह से देखा जाए तो शौचालय का 95 प्रतिशत पानी बर्बाद हो कर नालियों में बह जाता है. पानी की इस बर्बादी को रोका जा सकता है. सॉलिड को खाद में बदला जा सकता है. लिक्विड को फिल्टर किया जा सकता है.

वैज्ञानिकों की मानें तो इस सिस्टम को अपनाने के लिए सॉलिड और लिक्विड के लिए अलग-अलग दो टैंक बनाने होंगे. माइक्रो फिल्टर ट्रीटमेंट से टॉयलेट का पानी शोधित होगा जबकि सॉलिड वेस्ट एक अलग टैंक में कलेक्ट होगा. सॉलिड वेस्ट एक सप्ताह में जैविक खाद के तौर पर परिवर्तित हो जाएगा. लिक्विड से अमोनिया नाइट्रोजन गैस को एकत्र कर पानी को फिल्टर कर लिया जाएगा. इस फिल्टर पानी का टॉयलेट में पुन: इस्तेमाल किया जा सकेगा. इससे पानी की बर्बादी पर बड़े पैमाने पर रोक लग सकेगी. और जल संकट से मुकबला क रने के प्रयासों को गति मिल सकेगी.

पानी की बर्बादी को रोकने की कोशिशें राजस्थान में भी हो रही हैं, जहां एक समय पानी का जबर्दस्त संकट खड़ा था. राजस्थान के बाशिंदों ने पानी की बर्बादी को रोकने के सार्थक व उपयोगी प्रयास किये हैं. राजस्थान के गांव-गिरांव से लेकर छोटे-बड़े शहरों में स्थानीय लोग अब जल संरक्षण व संचयन के प्रति बेहद सजग दिखते हैं. स्नान का पानी बर्बाद नहीं जाने देते बल्कि उसे एकत्र कर कपड़ों की धुलाई व साफ-सफाई के कार्यों में उपयोग में लाते हैं.

जल जीवन का पर्याय है. इसलिए इसे संरक्षित करने तथा इसका सदुपयोग करने के लिए एकल और सामूहिक दोनों स्तरों पर प्रयास किया जाना चाहिए. हरेक सामान्य व्यक्ति अपने-अपने तौर तरीके से पानी को अधिक उपयोगी तो बना ही सकता है बल्कि उसे बर्बाद होने से भी रोक सकता है. मसलन शेविंग के दौरान नल को खुला नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इस दौरान कम से कम एक व्यक्ति के पीने का पानी नालियों में बह कर बर्बाद हो जाता है. इसी प्रकार बर्तन व अन्य साफ सफाई के कार्य में पानी फालतू नहीं बहाना चाहिए क्योंकि भविष्य में कहीं न कहीं बढ़ता जल संकट आपको भी परेशान करेगा. लिहाजा पानी को अधिक उपयोगी बनाने के साथ-साथ इसकी बर्बादी को भी रोकें.
 

रामेन्द्र सिंह चौहान
लेखक


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