ईरान की बढ़ीं मुश्किलें
अमेरिका ईरान के कथित परमाणु कार्यक्रम के कारण पर तत्काल और बेहद कड़े प्रतिबंध लगाने पर आमादा है। अपने सहयोगी देशों के साथ मिल कर ईरान की मुश्कें ऐसे कस देना चाहता है जिससे ईरान निकलने के लिए छटपटाता रह जाए।
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इस काम में उसे संयुक्त राष्ट्र का भी साथ मिल गया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के कारण उस पर फिर से तत्काल प्रतिबंध न लगाने के कुछ देशों के आखिरी प्रयास को समय सीमा से एक दिन पहले ही खारिज कर दिया।
यह कदम ऐसे समय उठाया है जब पश्चिमी देशों ने दावा किया कि ईरान के साथ हफ्तों की बैठकों के बावजूद कोई ठोस समझौता कर पाने में उन्हें सफलता नहीं मिल पाई है। ईरान को प्रतिबंधों से बचाने का प्रयास उसके निकटतम सहयोगी रूस और चीन कर रहे हैं।
दोनों देशों ने ईरान पर फिलहाल प्रतिबंध नहीं लगाने संबंधी प्रस्ताव 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को पेश किया था, जिसे मंजूरी के लिए नौ देशों का समर्थन चाहिए था, जो संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को शनिवार से प्रभावी होने से रोकने के लिए जरूरी था।
संयुक्त राष्ट्र में रूस के उपराजदूत दिमित्री पोल्यान्स्की ने कहा कि हमें उम्मीद थी कि यूरोपीय सहयोगी और अमेरिका ब्लैकमेल की बजाय बातचीत का रास्ता चुनेंगे। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिबंधों की बहाली के बाद विदेश में ईरानी संपत्तियों को फिर से जब्त कर लिया जाएगा, ईरान के साथ हथियारों के सौदे रुक जाएंगे और बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम जारी रखने पर ईरान पर दंडात्मक कार्रवाई होगी।
ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने इस फैसले को ‘अनुचित, अन्यायपूर्ण और अवैध’ करार दिया है। परमाणु अप्रसार संधि से हटने की चेतावनियों के बावजूद पेजेश्कियान ने कहा है कि ईरान का ऐसा करने का इरादा नहीं है। 2003 में इस संधि को छोड़ने वाला उ. कोरिया परमाणु हथियार बनाने में लगा है।
चार देश-चीन, रूस, पाकिस्तान और अल्जीरिया चाहते हैं कि ने ईरान को यूरोपीय देशों और अमेरिका के साथ बातचीत का और समय दिया जाए। ईरान ने कहना शुरू कर दिया है कि अमेरिका ने कूटनीति का पालन नहीं किया लेकिन यूरोपीय देशों ने तो कूटनीति को दफन ही कर दिया। देखना है कि जोर-जबर की चालों से ईरान को भी इराक की तरह बरबाद तो नहीं कर दिया जाएगा।
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