उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर अटकलें
केंद्र सरकार ने मंगलवार को उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को अधिसूचित कर दिया। एक दिन पहले ही धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिख कर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से पद छोड़ने की जानकारी दी थी।
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हाल में उनकी एम्स में एंजियोप्लास्टी हुई थी। बीते मार्च में उन्हें अपस्पताल में भर्ती कराया गया था। धनखड़ (74) ने अगस्त, 2022 में उपराष्ट्रपति का पदभार संभाला था, और उनका कार्यकाल 2027 तक था। उनका इस्तीफा संसद के मानूसन सत्र के पहले दिन आया।
बीच कार्यकाल में इस्तीफा देने के कारण धनखड़ विदाई भाषण भी नहीं दे पाए क्योंकि पांच वर्षीय कार्यकाल पूरा करने वाले उपराष्ट्रपति ही विदाई भाषण दे सकते हैं।
धनखड़ के इस्तीफे के साथ ही अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। कांग्रेस चाहती है कि इस्तीफे के वास्तविक कारणों का खुलासा होना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य कारण गिनाया जाना गले नहीं उतर रहा। सरकार ने जिस तरह ठंडेपन से उनके इस्तीफे भर की सूचना शेयर की है, उससे विपक्ष शंकालु है।
गौरतलब है कि विपक्ष ने पिछले साल धनखड़ पर कथित पक्षपात का आरोप लगाते हुए पद से हटाने के लिए अभियान चलाया था। आज वही विपक्ष एकजुट होकर धनखड़ के इस्तीफे को लेकर सत्तारूढ़ पार्टी पर हमलावर हो गया है।
बहरहाल, धनखड़ का कार्यकाल तमाम विरोधाभासों से भरा रहा। कई बार वे सत्ता पक्ष के प्रवक्ता की तरह आचरण करते भी दिखे। ऐसा भी हुआ जब उन्होंने सरकार की आलोचना तक की। किसानों के मसले पर एक कार्यक्रम में कृषि मंत्री को खरी-खरी भी सुनाई।
पहलगाम आतंकी हमला और जस्टिस यशवंत वर्मा के मुद्दे को लेकर सदन में चर्चा कराए जाने संबंधी उनके रुख ने सत्ताधारी पार्टी के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी थी। धनखड़ से सरकार की नाराजगी का एक संकेत सोमवार को भी दिखा जब राज्य सभा की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू अनुपस्थित रहे।
कांग्रेस इस्तीफे को दाल में कुछ काला बता रही है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से हरियाणा और राजस्थान में कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार समुदाय विशेष विरोधी है यानी आने वाले दिनों में सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक मोर्चा भी खुल सकता है।
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