आबादी पर सवाल
देश में हिंदुओं की आबादी में कमी आ रही है। धार्मिक अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी: राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण (1950-2015) दस्तावेज में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने खुलासा किया है।
आबादी पर सवाल |
इसमें हिन्दू आबादी के 7.82 फीसद कम होने के साथ मुसलमानों की 43.15 फीसद बढ़ने की बात की गई है। सिखों की आबादी 1.24 फीसद से बढकर 1.85 फीसद तथा इसाइयों की 2.24 फीसद से बढ कर 2.36 फीसद हो गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार बौद्ध भी बढ़े हैं, जबकि जैन व पारसियों की संख्या घटी है।
यूं तो जनसंख्या के आंकड़े जनगणना के माध्यम से आते हैं। जो 2011 के बाद से नहीं हो सकी है। जनगणना 2021 में प्रस्तावित थी, जो करोना महामारी के कारण स्थगित कर दी गई थी। इस अध्ययन में बहुसंख्यक व अल्पसंख्यक आबादी में आए उतार-चढाव के अंतरराष्ट्रीय रुझान का पता लगाने के लिए 167 देश शामिल थे, जिसके मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आबादी की बढ़ोत्तरी सबसे ज्यादा हुई।
जबकि बांग्लादेश में 10 फीसद व पाकिस्तान में 10 फीसद मुसलमानों की आबादी में बढ़त देखी गई। देश में मौजूदा वक्त में लोक सभा चुनाव चल रहे हैं, जिसमें सत्ताधारी दल पहले ही धार्मिक आधार पर बयानबाजियां करने और समाज में दरारें पैदा करने में हिचक नहीं रहा है। ऐसे में इस रिपोर्ट का प्रचार खास समुदाय को निशाना बनाने में सहायक साबित हो सकता है। विपक्ष भी इसे चुनावी चाल कह आरएसएस का एजेंडा चलाने का आरोप लगा रहा है।
वास्तव में हम धर्मनिरपेक्ष देश हैं, जिसमें सभी धर्मो का बराबर सम्मान किया जाना और उनके साथ सहिष्णुता बरतना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। मुसलमानों की आबादी बढ़ने के कारणों में यूं तो उनकी चार शादियां, धर्मांतरण व घुसपैठ को दोषी ठहराया जा रहा है, जबकि इसके पीछे अशिक्षा व जागरूकता की कमी अधिक है।
विशेष समुदाय पर देश की जनसांख्यिकी बदलने के प्रयासों का आरोप मढ़ना कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि दुनिया भर में मुसलमानों की आबादी सबसे तेजी से बढ़ रही है। बीते सौ वर्षो में वे 12.5 फीसद से बढकर 22.5 फीसद हो चुके हैं।
इसलिए केवल भारत में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या के लिए भ्रामक प्रचार से बाज आना चाहिए। साथ ही उन्हें जागरूक करने और सेहत संबंधी फायदों के विषय में आगाह करने के प्रयास करने चाहिए।
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