केजरीवाल मामले में हाईकोर्ट के बेबाक फैसले के बाद सबसे मुश्किल विपक्ष
अरविंद केजरीवाल मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के बेबाक फैसले ने कई भ्रमों को दूर कर दिया है। यही कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करना गलत है।
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इसलिए कि वह झूठे तथ्यों और डराए गए गवाहों से बलात लिए बयानों पर आम आदमी पार्टी (आप) की दिल्ली सरकार को जमींदोज के इरादे से रची गई साजिश के तहत है। यह आम चुनाव में भागीदारी के समान अवसर के अधिकार से वंचित करना है। इनके पीछे केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार है, जिसके इशारे पर ईडी काम कर रहा है।
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने 25 मिनट तक पढ़े गए अपने फैसले में केजरीवाल की याचिका के सभी मुद्दों को बिंदुवार स्पष्ट किया है। फैसले के मुताबिक उनकी गिरफ्तारी नियमत: और साक्ष्य-आधारित है। रिमांड जायज है। ईडी के आठ-आठ समनों के बाद भी पूछताछ में न आना और पर्याप्त सबूत भी हों तो गिरफ्तारी लाजिमी है।
इसमें हैसियत के हिसाब से फेरबदल नहीं किया जा सकता। दिल्ली के मुख्यमंत्री कीआबकारी नीति से जुड़े धनशोधन के करोड़ों रुपये के मामले में प्रमाणित संलिप्तता रही है। वे इससे व्यक्तिगत रूप से और बतौर आप संयोजक जुड़े रहे हैं। इसकी पुष्टि ईडी के समक्ष नहीं, बल्कि अदालत में धारा 164 के तहत गवाहों के बयानात से भी होती है। हालांकि आप नेता इन्हें ईडी का गढ़ा मान रहे हैं। उनका यह रवैया जनता को तथ्यों से गुमराह करने वाला है, चुनावी मौसम में वह चाहे जितना सही हो।
यह अदालत की मान्यता के भी विरु द्ध है। हालांकि उच्च न्यायालय ने इन गवाहों से आगे मुकदमे की सुनवाई के दौरान केजरीवाल के बहस के हक को नकारा नहीं है। न्यायालय का यह स्पष्टीकरण महत्त्वपूर्ण है कि यह मामला केंद्र नहीं बल्कि ईडी बनाम अरविंद केजरीवाल का है।
यह कोई राजनीतिक नहीं, सीधे-सीधे भ्रष्टाचार का मामला है। इसके आरोपित को जांच के तरीके तय करने या इसमें कोई सुविधा मांगने का हक नहीं है। उसे एक आम नागरिक की तरह ही लड़ाई लड़नी होगी। इस फैसले ने मुख्यमंत्री को पैदल कर दिया है। उन्हें सहानुभूति पाने के लिए नया तर्क गढ़ना होगा।
केजरीवाल की सबसे बड़ी चुनौती न्यायालय के इस आकलन को गलत ठहराने की होगी, जो ईडी से सहमत है कि आप एक पार्टी नहीं, बल्कि कंपनी की तरह है और वे खुद निदेशक की तरह काम करते हैं। उनके लिए फैसले का यह सबसे मुश्किल विपक्ष है। केजरीवाल अब सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष हैं, जहां इन टिप्पणियों पर भी गौर किया जाएगा।
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