संदेश के बहुआयाम

Last Updated 13 Apr 2024 01:17:44 PM IST

अमेरिकी पत्रिका न्यूजवीक के एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन से सामान्य संबंध की बात की है। यह महत्त्वपूर्ण तो है ही, बल्कि माध्यम-स्रेत एवं मतदान के लिहाज से भी अनेक संकेत देता है।


इसका प्राथमिक संदर्भ तो निश्चित ही भारत और चीन संबंध हैं पर इसके जरिए अमेरिका, रूस और तमाम यूरोपीय देश एवं वैश्विक समूहों-मंचों को एक स्पष्ट संदेश दिया गया है। इसके अपने सांदíभक महत्त्व हैं। देशज मतलब यह हो सकता है कि गलवान में 2020 की हिंसक झड़प के बाद से सीमा पर हालात सामान्य बनाए जाने पर ही संबंध सुधार की पहली सख्त शर्त एक थकान में बदलने लगी है। 21वें दौर की बातचीत का कोई बड़ा आउटपुट नहीं मिला है।

यह विस्तृत सीमा विवाद को सुलझाने की छह दशकों से जारी वार्ता की नियति को प्राप्त हो गई है। विपक्ष को हमलावर होने को मौका मिल रहा है। इससे सत्ता पक्ष की हानि हो सकती है। यह तर्क मान लें तो इससे विपक्ष और हमलावर हो जाएगा जो पहले ही चीन के जमीन हथियाने के मामले में मोदी पर कायर होने का आरोप लगा रहा है। ऐसी स्थिति में नरमियत दिखाना विपक्ष समेत देश एवं चीन को यह मानने का संकेत देना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी झुक गए हैं, जो सही नहीं है।

जाहिर है, मोदी जैसे प्रधानमंत्री ऐसा नहीं करेंगे-विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने की स्वाभाविक सदिच्छा के बावजूद। सामान्य संबंध की कामना देश के विकास से जुड़ी होती है, और कोई भी राजनेता इसकी महत्ता से इनकार नहीं कर सकता, लेकिन यह संप्रभुता की कीमत पर नहीं होती।

भारत जिस जगह पर है, वहां से तो इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। फिलहाल, इसका देशज अर्थ यही है कि मोदी ने कंकड़ फेंक कर ठहराव तोड़ने की कोशिश की है। चीन ने खुले दिल से इसका स्वागत भी किया है।

हालांकि उसने भारत के रवैये में सुधार आने को अमेरिका को संदेश दिया जाना भी पढ़ा है, जो क्वाड के मंच से भारत के जरिए चीन की घेरेबंदी कराना चाहता है, लड़ाना चाहता है। बाइडेन क्वाड, यूक्रेन करते हुए भी चीन के साथ होने का इजहार करने से बाज नहीं आ रहे तो तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद भारत सामान्यतया की ओर क्यों नहीं बढ़ सकता। इससे अमेरिकी दौरे तेज हो जाएंगे।
 



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