दिखानी होगी समझदारी
दक्षिण एशियाई देशों के संगठन आसियान-भारत शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 21वीं सदी को एशिया की सदी बताया।
![]() दिखानी होगी समझदारी |
उन्होंने कहा कि इसके लिए कोविड-19 महामारी के बाद नियम आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण करना होगा और मानव कल्याण के लिए सभी प्रयासों की जरूरत है। लेकिन इस संदर्भ में अहम सवाल यह है कि क्या 21वीं सदी को एशिया की सदी बनाने के महती काम में चीन का सहयोग प्राप्त होगा जिसकी विस्तारवादी नीतियों से सभी पड़ोसी देश परेशान हैं।
राजनयिक हलकों में चीन के सबसे बड़े पैरोकार भारतीय मूल के एक विद्वान किशोर मेहबूबानी ने ‘एशिया की सदी’ शीषर्क से एक चर्चित पुस्तक में लिखा है कि दुनिया के पिछले 2 हजार साल के इतिहास में 1800 वर्ष के कालखंड में भारत और चीन दुनिया के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश रहे हैं। पिछली दो सदियों के दुर्दिन कालखंड से ऊपर उठकर अभी दोनों देशों के सामने दुनिया का सिरमौर बनने का अवसर है। साथ ही लेखक मेहबूबानी ने चेतावनी भी दी है कि आपसी संघर्ष के कारण भारत और चीन यह अवसर गंवा भी सकते हैं।
अगर दोनों देशों के बीच हुए पिछले कुछ घटनाक्रमों को देखा जाए तो संतोष की बात दिखती है कि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। बावजूद इसके सीमा पर सामान्य रूप से शांति कायम है। भारत और चीन दोनों देश हिंसक वारदात की पुनरावृत्ति रोकने के लिए तत्पर दिखाई देते हैं। चीन का राजनीतिक नेतृत्व यह भी बुद्धिमत्ता का परिचय दे तो संबंधों को पटरी पर लाया जा सकता है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई बार दोहराया है कि द्विपक्षीय संबंधों को फिर से पटरी पर लाने के लिए सीमा से सेना को पीछे हटाना तथा सामान्य स्थिति कायम रखना एक आवश्यक शर्त है। लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हो रहा। अभी पिछले दिनों की बीजिंग ने ‘चीन के मानक मानचित्र’ का 2023 संस्करण जारी किया था जिसमें ताइवान, दक्षिण चीन सागर, अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चीन को चीनी क्षेत्र के रूप में शामिल किया जिसका भारत समेत कई देशों ने कड़ा प्रतिवाद किया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने आत्मावलोकन का अवसर है। यदि सचमुच 21वीं सदी को एशिया की सदी बनाना है तो उसे विस्तारवादी नीति त्यागनी होगी और सीमाओं को लेकर मनमाना रवैया छोड़ना होगा।
Tweet![]() |