बचाइए अपने बच्चों को
देश स्तर पर कोचिंग के हब बने कोटा में छात्रों की खुदकुशी एक भयावह ट्रेंड बनती जा रही है। यह बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
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अभी कल रविवार को ही नीट का टेस्ट देने के बाद दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली। इसी अगस्त में इंजीनियरिंग-मेडिकल की तैयारी में लगे छह छात्रों ने अपनी जान दे दी है। चालू वर्ष 2023 के पूरे होने में अभी तीन-चार महीने शेष है, यह आंकड़ा 25 तक पहुंच गया है। यह बीते कुछ वर्षो में सर्वाधिक है। यह बढ़ती तादाद चेतना को सुन्न कर दे रही है। छात्रों की खुदकुशी की अकेली वजह-निश्चित सफलता के लिए बेहतर न कर पाने का दुसह्य दबाव है-अब किसी से छिपी नहीं है। न छात्र से और न उनके माता-पिता/अभिभावकों से।
कोचिंग-संचालकों को भी यह बात मालूम है। सरकार भी इसे जानती है, जबकि इसमें उसकी भूमिका सबसे आखिर में आती है। फिर भी प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने छात्रों की जान बचाने के लिए शुक्रवार को अपने आवास पर कोचिंग संचालकों के साथ दो घंटे तक मंथन किया। सरकार ने शिक्षा एवं चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई है, जो 15 दिनों बाद अपनी रिपोर्ट में इस मसले का स्थायी हल बताएगी। फिलहाल सरकार ने कोचिंग में होने वाले सभी टेस्ट एग्जाम को दो महीने तक के लिए रोक दिया है।
सवाल है कि स्थिति को इस हद क्रूर बनाने के लिए कौन जिम्मेदार हैं। निस्संदेह, छात्रों के माता-पिता दोषी हैं, जो अपने बच्चों की रु चि और क्षमता को थाहे बिना ही उन्हें इंजीनियर-डॉक्टर बनाने की अपनी अधूरी-असंतृप्त इच्छाओं एवं दूसरों की देखा-देखी पाली गई महत्त्वाकांक्षाओं का मनो बोझ उन पर डालते रहते हैं। ऐसे में छात्रों को खुद से लक्ष्य तय करने की इच्छा दबी रह जाती है। कई मामलों में खुद छात्र भी अंधानुकरण करते हुए अपने लिए कठिन विषय एवं करिअर का चुनाव कर लेते हैं, जिनके भी योग्य नहीं होते।
पहली बार अपनों से दूर रह रहा छात्र अकेले ही अपने ऊपर पड़ते चौतरफा दबावों से जूझता होता है। खुद को साबित करने, इसमें फेल हो जाने, अपने साथियों के सफल होने, इस तरह अपने माता-पिता के सपनों को पूरा न करने का दोषी होने आदि दबाव उसे अपने ट्रैप में ले लेते हैं। इसके बाद उन्हें निर्थक लगती अपनी जिंदगी मौत में ही सार्थक लगती है। अगर बच्चों को बचाना है तो उनमें यह बात गहरे रोपनी होगी कि परीक्षाएं हमेशा चुनौतीपूर्ण ही रहेंगी पर इनमें फेल होना उनकी जिंदगी का दि एंड नहीं है। ईमानदार प्रयास अपने वश का है। यही मायने रखता है।
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