महिला का रिहा करने का उचित फैसला

Last Updated 29 May 2023 01:31:41 PM IST

अपने दो बच्चों की हत्या और आत्महत्या के प्रयास करने वाली अपराधी को समय पूर्व रिहाई का आदेश उच्चतम न्यायालय ने दिया।


महिला का रिहा करने का उचित फैसला

अदालत ने कहा, वह नैतिकता व सदाचार पर समाज को उपदेश देने वाली संस्था नहीं है,  बल्कि निर्णय सुनाते हुए, सोच-विचार कर बनाए गए कानून के शासन से बंधी होती है। अवैध संबंध रखने वाला पुरुष इस हत्यारिन को डराया-धमकाया करता था। इसलिए उसने अपने दो बच्चों को कीटनाशक पिला कर खुदकुशी करने की कोशिश की। मगर ऐन वक्त रिश्तेदार ने जहर छीन लिया। दोनों बच्चे तत्काल मर गए। महिला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

निचली अदालत ने 302 (हत्या) और 309 (आत्महत्या) के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जुर्माना भी लगाया। बाद में उच्च न्यायालय ने महिला की याचिका स्वीकार करते हुए उसे 309 के तहत बरी कर दिया मगर 302 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखी। बीस वर्ष का कारावास काट चुकी महिला द्वारा समय-पूर्व रिहाई का अनुरोध तमिलनाडु सरकार ने अपराध की क्रूर प्रकृति के आधार पर खारिज कर दिया।

इस पर शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, महिला ने अपने अवैध संबंधों को जारी रखने के लिए अपने बेटों की हत्या की कोशिश नहीं की। बल्कि अवैध संबंधों के कारण हताशा और निराशा में बच्चों की हत्या के बाद आत्महत्या करने की कोशिश की। इसे क्रूर अपराध की श्रेणी में बांध कर नहीं रखा जा सकता क्योंकि उसने अपनी जान लेने का भी प्रयास किया था।

अदालत ने कहा याचिकाकर्ता पहले ही भाग्य के क्रूर हाथों बहुत कुछ झेल चुकी है। इसलिए तत्काल रिहाई का आदेश देकर अदालत ने उदारता ही नहीं बरती, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि वह उपदेश देने वाली संस्था नहीं है। कानूनन व सामाजिक तौर पर महिला सजा भुगत चुकी है।

बल्कि इस रिहाई के बाद भी वह सामान्य जीवन नहीं बिता सकेगी। बच्चों की मौत से व्यथित मां का हत्यारिन के कलंक के साथ जीना और बीस सालों की जेल कम तो नहीं कही जा सकती। विवाहेतर संबंधों का सारा ठीकरा अपने यहां स्त्री के सिर पर ही फोड़ दिया जाता है। लोक लाज के भय से वह अपनी जान लेने पर आमादा हो जाती है। ऐसे मामलों के अपराधियों को सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए।



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