बहिष्कार की राजनीति
नीति आयोग की संचालन परिषद की शनिवार को संपन्न आठवीं बैठक का ग्यारह मुख्यमंत्रियों ने बहिष्कार किया। ये मुख्यमंत्री गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री हैं।
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बैठक में मुख्य रूप से 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के एजेंडे पर विमर्श किया गया और स्वास्थ्य, कौशल विकास, महिला सशक्तीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास समेत कई मुद्दों पर मंथन हुआ। बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित देश बनाने के लिए राज्यों और जिलों को दीर्घकालीन दृष्टिकोण पत्र तैयार करना चाहिए। गौरतलब है कि 2047 में भारत अपनी आजादी के सौ साल पूरे करेगा।
भाजपा ने नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार किए जाने को दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने मोदी विरोध के नाम पर अपने ही राज्य के नुकसान पर कटाक्ष करते हुए बहिष्कार करने वाले मुख्यमंत्रियों से कहा कि आखिर, आप कहां तक जाओगे। उन्होंने दुख जताया कि सीएजी, सीईसी, चुनाव आयोग का पहले ही विरोध कर चुकीं इन मुख्यमंत्रियों की पार्टियां नये संसद भवन के उद्घाटन के भी विरोध में हैं।
विपक्ष की पार्टियों के इस प्रकार लगातार विरोध में रहने से धारणा बन गई है कि विपक्ष विरोध के लिए ही विरोध की राजनीति कर रहा है। यह धारणा विपक्ष के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती क्योंकि मुद्दा ठोस भी हो तो संदेश यही जाता है कि विरोध के लिए विरोध किया जा रहा है। यही कारण है कि नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करने वाले मुख्यमंत्रियों के इस तर्क में भी आमजन का यकीन नहीं जमेगा कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार संघीय ढांचे का सम्मान नहीं कर रही है।
बल्कि संदेश यही जा रहा है कि विपक्ष की आर्थिक महत्त्व के मुद्दों से ज्यादा राजनीति करने में रुचि है। दरअसल, नीति आयोग का विरोध बेतुका इसलिए लगने लगा है कि नीति आयोग का काम देश को दरपेश आर्थिक मुद्दों पर विमर्श करना है। क्या आर्थिक बेहतरी से जुड़े मुद्दों पर विमर्श के स्थान पर राजनीति करना उचित है। भले ही पक्ष और विपक्ष विकास की राजनीति करने का दम भरते हों लेकिन विपक्ष का रवैया वाकई खलने वाला ही है। क्योंकि नीति आयोग के सामने ही राज्यों के मुख्यमंत्री या वित्त मंत्री अपने-अपने राज्य का आर्थिक एजेंडा या दृष्टिकोण प्रस्तुत करके धन आवंटन की मांग करते हैं। उसी संस्था के प्रति बेरुखी समझ में आने वाला फैसला नहीं कहा जा सकता।
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