नाउम्मीदी का सिलसिला
उच्चतम न्यायालय ने आंदोलनकारी पहलवानों की याचिका पर सुनवाई यह कहते हुए बंद कर दी कि उन्हें सुरक्षा दे दी गई है, जिन्होंने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं।
![]() उच्चतम न्यायालय |
अदालत ने कहा, इस पर एफआईआर दर्ज हो चुकी है, याचिकाकर्ता अब हाई कोर्ट या निचली अदालत जा सकते हैं। गुरुवार को जब यह फैसला आया, उसी की दरम्यानी रात पहलवानों के साथ दिल्ली पुलिस की झड़प भी हुई। पहलवानों का आरोप है कि पुलिस की पिटाई से उन्हें चोटें आई। हालांकि पुलिस ने आरोपों का खंडन किया है। कोर्ट के इस आदेश के बाद तेरह दिनों से धरना दे रहे खिलाड़ियों ने कहा, हम अपने सभी मैडेल्स सरकार को लौटा कर सामान्य जिंदगी जिएंगे।
उन्होंने आम लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में जंतर मंतर पहुंचने की अपील भी की जिस पर पुलिस चाकचौबंद हो गई और किसान संगठनों को धरना स्थल पर पहुंचने से रोकने के लिए राजधानी के बॉर्डरों पर बैरीकेडिंग के साथ चेकिंग कड़ी कर दी। विपक्षी दलों के साथ ही ढेरों किसान पहलवानों को समर्थन पहले ही जता चुके हैं।
इसलिए इनके भारी संख्या में आने का अंदेशा व्यक्त किया जा रहा है। किसान नेता राकेश टिकैत भी यहां पहुंचे और उन्होंने आंदोलन को जातिवाद में बदलने की साजिश का आरोप लगाया। हालांकि आंदोलन ने उस तरह की गति नहीं पकड़ी, जैसी कि उम्मीद थी। लेकिन आमजन को लग रहा है, देश का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों की भावनाओं की अनदेखी हो रही है। यह भी कि उनका गुस्सा, दुख, ग्लानि और शोषण के खिलाफ उठ रही आवाज कोरी राजनीति नहीं हो सकती।
वास्तव में सरकारी तंत्र का तौर-तरीका बेहद निराशाजनक है। उस पर सबसे बड़ी अदालत से की गई उम्मीदों पर नाउम्मीदी से भी खिलाड़ी आहत हैं। सार्वजनिक तौर पर नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। प्रतीत हो रहा है कि सरकार ने भी इसे जिद से जोड़ लिया है। तेज गर्मी, आंधी-बारिश में सड़कों पर बैठे खिलाड़ियों के साथ हो रहा बर्ताव किसी भी नजरिये से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता। जांच पूरी होने या कानूनी कार्यवाही चलने तक आरोपी के साथ बरती जा रही किसी भी तरह की सहानुभूति इस आशंका को बलवती करती है। खिलाड़ियों का तो पूरा भविष्य ही दांव पर लगा है, इसलिए किसी भी नजरिए से यह सब उनके हित में नहीं ठहराया जा सकता।
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