विपक्षी एकता की कवायद

Last Updated 21 Feb 2023 01:38:31 PM IST

बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (यू) के नेता नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ने के बाद विपक्षी दलों की एकता की मुहिम में जुटे हुए हैं।


विपक्षी एकता की कवायद

उन्होंने शनिवार को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में भाकपा माले के एक राष्ट्रीय कार्यक्रम में कांग्रेस को सुझाव देते हुए कहा कि भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बना है उसका लाभ उठाते हुए उसे भाजपा विरोधी दलों को एकजुट कर गठबंधन बनाना चाहिए। अगर ऐसा हो गया तो 2024 के लोक सभा चुनाव में भाजपा को 100 से भी कम सीटों पर समेटा जा सकता है।

कांग्रेस ने नीतीश के इस सुझाव का स्वागत करते हुए कहा कि 24 से 26 फरवरी तक रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा है, जिसमें विपक्षी एकता से लेकर देश की राजनीति से संबंधित सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। इसी के साथ पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने इस बात पर भी जोर दिया कि कांग्रेस को साथ लिये बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है। यह वास्तविकता है कि गैर-भाजपा दलों में कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसका जनाधार कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक है। लेकिन विपक्षी एकता की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को कुछ क्षेत्रीय दलों के नेता अपने नेता के तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। राष्ट्रीय और राज्यों की राजनीति के स्तर पर भी तीन दशक पुरानी परिस्थितयां अब नहीं रहीं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक राजनीतिक परिदृ्श्य बदल गया है।

भाजपा के विरुद्ध सबसे मुखर रहने वाले विनाथ प्रताप सिंह और हरकिशन सिंह सुरजीत जैसे राजनीति के कुशल खिलाड़ी अब नहीं रहे। बिहार में लालू यादव और उप्र में मुलायम सिंह यादव की जगह उनके पुत्र क्रमश: तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव हैं। तमिलनाडु में करुणानिधि की जगह एम.के. स्टालिन हैं। आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद तेलंगाना में चंद्रशेखर राव का उदय हुआ है। जो अति महत्त्वाकांक्षी हैं और प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं।

इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की निगाहें भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लगी हुई है। यह स्थिति बताती है कि भाजपा के विरुद्ध अखिल भारतीय स्तर पर कोई राजनीतिक गठबंधन बनाना असंभव नहीं तो बेहद कठिन अवश्य है। बेहतर तो यह होगा कि सभी क्षेत्रीय विपक्षी दल अपने-अपने राज्यों में भाजपा का रथ थामने के लिए अपनी स्थानीय रणनीति बनाते और आधिकारिक चुनावी लाभ लेने का प्रयास करते।



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