डोभाल की पुतिन से भेंट
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल की रूस यात्रा कई मायने में बेहद महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है।
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हाल-फिलहाल डोभाल अमेरिका की यात्रा पर थे, जहां उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडेन के आला अधिकारियों के साथ कई अहम मुद्दों पर गंभीर मंतण्रा की। उसके बाद डोभाल ने ब्रिटेन का रुख किया और प्रधानमंत्री ऋषि सुनक समेत वहां के कई अधिकारियों के साथ बैठक की और आतंकवाद समेत कई मसलों पर व्यापक चर्चा की। अब रूस के दौरे पर उन्होंने वहां के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के अलावा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मुलाकात कर द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर विमर्श किया। करीब दो महीने के दरमियान डोभाल ने कई देशों का दौरा किया है। साफ है कि डोभाल का हालिया दौरा सामान्य नहीं कहा जा सकता है।
जिस तरह से उन्होंने अफगानिस्तान के मामले पर भारत की राय रखी है, उसके दूरगामी असर दिखेंगे। दरअसल, डोभाल मास्को में अफगानिस्तान पर आयोजित ‘पांचवें क्षेत्रीय संवाद’ पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उन्होंने पाकिस्तान और चीन का नाम लिये बिना सख्त लहजे में कहा कि किसी भी देश को आतंकवाद और कट्टरवाद फैलाने के लिए अफगानिस्तान की सरजमीं का इस्तेमाल करने नहीं दिया जाना चाहिए और भारत अफगानिस्तान के लोगों को जरूरत के वक्त कभी अकेला नहीं छोड़ेगा।
मास्को की चिंता भी कमोबश भारत की तरह ही थी। पुतिन ने भी अफगानिस्तान के हालात को सुधारने की आड़ में अपने एजेंडे को पूरा करने वाले देशों की नीति और नीयत पर सवाल खड़े किए। यह समझने में किसी को गलतफहमी नहीं रहनी चाहिए कि भारत और रूस के विचार अफगानिस्तान को लेकर क्या हैं। वैसे भी अफगानिस्तान की बेहतरी के लिए वहां भारत, रूस व कुछेक देशों की विकास परियोजनाएं चल रही हैं, ऐसे में वहां अगर हालात डांवाडोल होंगे तो आतंकियों के लिए वारदात को अंजाम देना और पड़ोसी मुल्कों के लिए सिरदर्दी पैदा करना आसान हो जाएगा।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा पर लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य छोटे आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं, जो भारतीय उपहमाद्वीप के लिए चिंता का सबब हैं। निश्चित तौर पर डोभाल की सक्रियता से बाकी देशों को यह समझने में आसानी होगी कि अफगानिस्तान में शांति सभी के लिए कितनी जरूरी है।
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