अपराधियों का रिकार्ड

Last Updated 30 Mar 2022 02:39:29 AM IST

अपराधियों की पहचान के तरीकों में काफी बदलाव आने वाला है। अब इसमें तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ विकसित देशों की ही विशेषता नहीं रहेगी बल्कि भारतीय पुलिस को भी इसमें महारत हासिल होगी।


अपराधियों का रिकार्ड

हालांकि तकनीक के इस्तेमाल पर आपत्तियां भी हैं। इन आपत्तियों को विपक्ष ने लोक सभा में संबंधित विधेयक रखे जाते समय पुरजोर तरीके से जाहिर भी किया। लोकसभा में सोमवार को केंद्र सरकार ने दंड प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पेश किया, विधेयक पारित होने के बाद किसी मामले में गिरफ्तार और दोषसिद्ध अपराधियों का रिकॉर्ड रखने के लिए तकनीक का इस्तेमाल संभव हो सकेगा। विधेयक पेश करते वक्त सरकार ने कहा कि मौजूदा अधिनियम 102 साल पुराना है।

उसमें सिर्फ  उंगलियों के निशान और पांव के निशान लेने की अनुमति थी। नई प्रौद्योगिकी आने के बाद इसमें संशोधन की जरूरत महसूस की जा रही थी। संशोधन से जांच एजेंसियों को जरूरी सूचनाएं हासिल होंगी और दोषसिद्धि भी बढ़ेगी। विपक्ष के भारी विरोध के चलते विधेयक पेश करने के लिए मतविभाजन कराना पड़ा। 58 के मुकाबले 120 मतों से विधेयक पेश हुआ। विपक्ष का आरोप था कि विधेयक अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन है। यह निजता के अधिकार का भी उल्लंघन करता है। विधेयक पारित हो गया तो पुलिस के पास आरोपित या सजायाफ्ता लोगों के शारीरिक और जैविक नमूने लेने का अधिकार आ जाएगा। पुलिस आंखों की पुतलियों की पहचान, हथेली-पैरों की छाप, फोटो और लिखावट के नमूने भी ले सकेगी।

सरकार का कहना है कि ज्यादा रिकॉर्ड होने से अपराधियों को पकड़ने और उन्हें सजा दिलाने के काम में तेजी आएगी। यह रिकार्ड 75 वर्षो तक रखा जा सकेगा। विधेयक पारित होने के बाद अपराधियों की पहचान अधिनियम 1920 खत्म हो जाएगा और नया कानून उसकी जगह ले लेगा।

माना जा सकता है कि विकसित देशों में प्रयोग की जा रही नई तकनीक विसनीय एवं भरोसेमंद परिणाम दे रही है और इसे सम्पूर्ण विश्व में मान्यता प्राप्त है, लेकिन सरकार को राजनीतिक दलों और आंदोलनकारियों की इस आशंका को भी दूर करना होगा कि थाना प्रभारियों और हेड कांस्टेबलों के जरिए कानून का दुरूपयोग नहीं होगा और कोई मामला दर्ज होते ही पुतलियों की छाप और डीएनए की जांच कर उन्हें हमेशा के लिए आशंकित नहीं रखा जाएगा।



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