दिल दहलाती आग
शुक्रवार देर रात उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुर गांव स्थित मेट्रो लाइन के पास झुग्गियों में लगी भीषण आग से 7 व्यक्तियों की मौत हो गई।
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मरने वालों में चार नाबालिगों समेत दो परिवारों के सात परिजन शामिल हैं। आग में 32 झुग्गियां जल कर खाक हो गई। घटना पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गहरा दुख व्यक्त किया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने घटनास्थल का दौरा करके पीड़ित परिवारों को ढ़ाढ़स बंधाया। वयस्क मृतकों के परिजनों को दस लाख, नाबालिग मृतकों के परिजनों को पांच लाख तथा घायलों को 25-25 हजार रुपये की मदद का ऐलान किया।
पीड़ित परिवार कूड़ा बीनने वाले और दिहाड़ी मजदूर हैं। उत्तर प्रदेश से मेहनत-मजदूरी करके पेट पालने की गरज से दिल्ली पहुंचे थे। चश्मदीदों के मुताबिक, रात साढ़े बारह बजे के करीब भड़की आग को कड़ी मशक्कत के बाद तड़के चार बजे के आसपास बुझाया जा सका। इस दौरान रसोई के छोटे सिलेंडर एक के बाद एक फटने से आग भयावह हो गई। घटना की जांच के आदेश दिए गए हैं।
पन्नियों से लिपटीं ये झुग्गियां पांच-पांच सौ गज के दो प्लाटों पर थीं। इस क्षेत्र में खाली पड़े प्लाटों पर बड़ी संख्या में झुग्गियां डलवाई गई हैं। प्लॉट मालिक इनसे मासिक किराया वसूलते हैं। बुनियादी सुविधाएं न के बराबर हैं। झुग्गियां प्लास्टिक की पन्नी आदि से बनाई गई हैं। पन्नी बेहद ज्वलनशील होने से आग तत्काल विकराल रूप ले लेती है। गर्मियों के दिनों में आग की घटनाएं ज्यादा होती हैं। बीते तीन साल के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं।
सर्दियों में औसतन आग लगने की 60 के करीब कॉल आती हैं, तो गर्मियों में यह संख्या बढ़कर 120-130 हो जाती है। शॉर्ट सर्किट और मानवीय भूल से लगी आग हर साल जान-माल का काफी नुकसान करती है। शासन-प्रशासन पीड़ितों को कुछ फौरी इमदाद देकर और जांच कराने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेता है।
जरूरी है कि दिल्ली में सभी झुग्गी बस्तियों या जमावड़ों का सव्रे कराया जाए। ऐसे आकलन कराए जाएं जिनसे एहतियाती उपाय करने में आसानी हो। ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ जैसी बातें राजनीतिक दलों ने जब-तब कही हैं, लेकिन अभी तक जुमला साबित हुई हैं। जरूरी है कि तमाम उपाय किए जाएं ताकि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
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