रवैया बदलें जांच एजेंसियां
अगर हमारी प्रमुख जांच एजेंसियां जांच में ढीला-ढाला रवैया अपनाती हैं और समय से जांच अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाती है तो सिर्फ इस आरोप में किसी व्यक्ति को बेमियादी समय तक जेल की सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता कि उससे देश की सुरक्षा को खतरा है।
रवैया बदलें जांच एजेंसियां |
इसी लचर रवैये के चलते चौदह महीने से जेल में बंद एक आरोपित को जमानत देते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अगर जांच चल रही है तो सिर्फ इस आशंका पर किसी को बेमुद्दत जेल में नहीं रखा जा सकता कि वह व्यक्ति किसी ऐसे षड्य़ंत्र में शामिल रहा होगा, जिससे देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। मोहम्मद इनामुल हक को सीमा पार से जानवरों की तस्करी के आरोप में पकड़ा गया था। बीएसएफ के एक कमांडेंट को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया था। बीएसएफ कमांडेंट और अन्य आरोपितों को जमानत दे दी गई, जबकि कलकत्ता हाईकोर्ट ने इनामुल हक की जमानत याचिका खारिज कर दी और वह एक साल से भी ज्यादा समय से जेल में है, जबकि इस अपराध में अधिकतम सजा सात साल की है।
सीबीआई ने कहा कि आरोपित उस गिरोह का सरगना है, जिसमें बीएसएफ और कस्टम के अधिकारियों के अलावा स्थानीय पुलिस के लोग भी शामिल हैं। यह गिरोह भारत-बांग्लादेश सीमा पर तस्करी में सक्रिय है। हक के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया गया था, जिसे धता बताते हुए वह बांग्लादेश से होते हुए पश्चिम बंगाल पहुंच गया। यह मामला देश की सुरक्षा के लिए खतरे का संकेत है और एक बड़ी साजिश की जांच अभी होनी है तो बेंच ने पूछा, हम इस बेमियादी जांच का मतलब नहीं समझ पा रहे हैं। क्या एक साल और दो महीने बड़ी साजिश की जांच के लिए काफी नहीं हैं?
भारत में पिछले दिनों पुलिस ने बड़ी संख्या में देशद्रोह के मुकदमे दर्ज किए हैं और अनेकों लोग जेल में बंद हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की पिछले साल की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2014 से 2019 के बीच देशद्रोह के 326 मामले दर्ज हुए, जिनमें 559 लोगों को गिरफ्तार किया गया जबकि सिर्फ 10 लोगों को सजा हुई है। शीर्ष अदालत ने इस फैसले में जांच एजेंसियों को यह सबक सिखाया है कि अपनी विसनीयता को बनाए रखने के लिए उन्हें जांच में तेजी लानी होगी। इसमें अदालत ने जेल नहीं जमानत के न्यायिक सिद्धांत को भी प्रतिपादित किया है।
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