सबक ले सरकार
बिहार और उत्तर प्रदेश में भारी बवाल के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं को स्थगित करना ही सही कदम माना जाएगा।
सबक ले सरकार |
लगातार तीसरे दिन जिस तरह से बिहार के कई हिस्सों में और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में विरोध की आग फैली है, वह वाकई चिंताजनक है। खैर, रेलवे ने दोनों परीक्षाओं-नान टेक्निकल पॉपुलर कैटेगरी (एनटीपीसी) और लेवल वन को देर से ही सही स्थगित कर सही कदम उठाया है। निश्चित तौर पर सरकार को छात्रों की दिक्कतों को समझने की दरकार है। छात्रों के बीच इस बात को लेकर रोष था कि विज्ञापन निकालने के करीब तीन वर्ष बाद रेलवे बोर्ड ने परीक्षा का आयोजन किया। ज्ञातव्य है कि ग्रुप डी भर्ती (लेवल-1) परीक्षा का विज्ञापन 2019 में निकाला गया था। यह घोर लापरवाही है और इसके लिए दोषी अधिकारियों को जरूर सजा मिलनी चाहिए।
इस सच को स्वीकारने में संकोच नहीं करनी चाहिए कि सरकारी नौकरियां काफी सीमित हो गई हैं। महज कुछ सौ सीटों के लिए करोड़ों आवेदन आते हैं। लिहाजा सरकार को नौकरियां देने की नीति में बदलाव करना होगा। अगर आंदोलनरत छात्रों को इस बात पर आपत्ति थी कि इंटर के छात्र सिर्फ इंटरस्तरीय परीक्षाओं में ही बैठें तो यह गलत संकल्पना है। यह तकनीकी मसला है। लिहाजा छात्रों को अपनी बात तरीके से रखनी चाहिए थी, न कि हिंसा का रास्ता अख्तियार करना चाहिए था। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना किसी भी दृष्टि से जायज नहीं कहा जा सकता है। छात्रों को यह बात समझनी होगी कि हंगामा करने से उनके लिए अवसर सीमित हो जाएंगे। यह पूरा घटनाक्रम सरकार के लिए बड़ा सबक है।
उसे अपनी नीतियों को पारदर्शी, समयबद्ध और तार्किक करना होगा। कई बार यह देखा गया है कि प्रतियोगी परीक्षाएं हो जाने के काफी अर्से तक उसके परिणाम नहीं आते हैं। आते भी हैं तो आधे-अधूरे। क्या इसे उचित माना जाएगा। छात्रों की मन:स्थिति को समझने के लिए उसकी मन की बातों को तवज्जो देनी होगी। बेरोजगारी अभिशाप है और इसकी आग में झुलसने वाले युवा की उम्मीद जब धुंधली पड़ जाती है तो वह निराशा में गलत राह पर चल पड़ता है। अब भी देर नहीं हुई है। सरकार ने 4 मार्च तक समय लिया है। देखना है, वह कैसे छात्रों को संतुष्ट करती है। नि:संदेह सरकार की जिम्मदारी का दायरा ज्यादा बड़ा है।
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