रंगभेद के योद्धा

Last Updated 28 Dec 2021 12:11:52 AM IST

नोबेल पुरस्कार विजेता आर्क बिशप डेसमंड टूटू का दक्षिण अफ्रीका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।


रंगभेद के योद्धा

रंगभेद या नस्ली भेदभाव आज भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान हैं। इसीलिए टूटू के निधन से रंगभेद विरोधी आंदोलन को गहरा धक्का लगा है। वह सही मायने में समानता पर आधारित ऐसे आदर्श वैश्विक समाज की स्थापना करना चाहते थे, जहां गोरे-काले, ऊंच-नीच और अमीर-गरीब के बीच कोई फर्क न रहे। हालांकि उनकी इस सोच को यूटोपियन कहा जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि वह आजीवन ऐसे समाज की स्थापना के लिए संघषर्रत और प्रयासरत रहे।

वास्तव में वह दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी प्रतीक बन गए थे। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति रामफोसा ने डेसमंड टूटू को एक प्रतिष्ठित, आध्यात्मिक नेता, रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता और मानवाधिकार का वैश्विक प्रचारक करार दिया और कहा कि वे देश और दुनिया में दक्षिण अफ्रीका की सबसे मशहूर शख्सियतों में शामिल रहे। डेसमंड टूटू का जन्म 7 अक्टूबर 1931 को उत्तर पश्चिम अफ्रीका में हुआ था। वे 1986 में केपटाउन के आर्क बिशप बने। नेल्सन मंडेला ने राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद टूटू को मानवाधिकारों के हनन की जांच करने वाले आयोग का अध्यक्ष बनाया था। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि टूटू ने रंगभेद के विरुद्ध अहिंसक आंदोलन में आध्यात्मिक मूल्यों का समावेश किया।

यह ठीक ऐसा ही है जैसे बालगंगाधर तिलक ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में गणपति पूजन को शामिल किया। द. अफ्रीकी समाज को रंगभेद से मुक्ति दिलाने में टूटू ने जिस तरह आजीवन संघर्ष किया वह आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरणा देती रहेगी, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि भारत ही नहीं पश्चिमी देशों में भी मनुष्य और मनुष्य के बीच भेदभाव का कोई-न-कोई रूप अस्तित्व में है।

पिछले ही वर्ष एक अेत व्यक्ति के विरुद्ध नस्ली हिंसा ने पूरे अमेरिकी समाज के माहौल को बदल दिया था। लोग सड़कों पर थे ‘अेत जान की भी कीमत है’ का पुराना आंदोलन उभरकर सामने आ गया था। टूटू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि उन्होंने रंगभेद के खिलाफ जो अहिंसक आंदोलन चलाया उसे आने वाली पीढ़ी अंतिम परिणति तक पहुंचाए।



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