नहीं रही निडर आवाज
वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ का शनिवार को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया।
![]() विनोद दुआ |
67 वर्ष के दुआ लंबे समय से लीवर की बीमारी से पीड़ित थे। इस वर्ष उन्हें कोरोना भी हुआ था। कोरोना की दूसरी लहर के बाद से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। दूसरी लहर के दौरान ही कोरोना से उनकी पत्नी डॉ. पद्मावती चिन्ना दुआ का जून माह में निधन हो गया था। दुआ की जिंदगी अनूठी रही। रिफ्यूजी कॉलोनी से लेकर दिल्ली तक 42 वर्षो के अपने पत्रकारीय जीवन में उन्होंने पत्रकारिता के उच्चतम पैमाने को छुआ। हिंदी टीवी पत्रकारिता को नया आयाम दिया।
उन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन युग में दूरदर्शन के साथ अपना कॅरियर आरंभ किया था। दूरदर्शन पर ‘युवा मंच’ उनका शुरुआती कार्यक्रम था, लेकिन उन्हें देशव्यापी प्रसिद्धि 1984 के उस चुनाव विश्लेषण से मिली, जिसकी उन्होंने प्रणय रॉय के साथ सह-एंकरिंग की थी। पद्मश्री से सम्मानित दुआ ने एनडीटीवी और सहारा टीवी समेत कई टीवी चैनलों के साथ भी काम किया।
राजनीति से लेकर खाना पकाने तक में उनकी बेहद दिलचस्पी थी। वैसे मीडिया के माध्यम से उनका पहला साक्षात्कार 1970 के दशक के मध्य में आकाशवाणी दिल्ली के युववाणी चैनल के जरिए ही हो गया था। वे उनकी पढ़ाई के दिन थे और छात्र जीवन के उन्हीं दिनों में उन्होंने युववाणी पर एक के बाद एक कार्यक्रम पेश कर मीडिया के लिए जरूरी रुचि और आत्मविश्वास पैदा कर लिया था। शास्रीय संगीत और गायन में उनकी विशेष रुचि थी।
‘आपके लिए’, ‘परख’ (देश की पहली हिंदी साप्ताहिक दृश्यात्मक पत्रिका), ‘चक्रव्यूह’, ‘प्रतिदिन’, ‘जायका इंडिया का’, ‘जन गण मन की बात’ आदि उनके प्रमुख टीवी कार्यक्रम रहे। विनोद दुआ ने पत्रकारिता में उच्च पेशेवराना मूल्यों को जिया। उस दौर में पत्रकारिता आरंभ की जब दर्शक शिद्दत से टीवी पर अपनी पसंद के कार्यक्रम का इंतजार करते थे। आज टीवी पत्रकारिता उस दौर में पहुंच गई है, जब दर्शक उसे सरकारी और दरबारी मानने लगे हैं।
हमेशा सच के साथ रहे दुआ कहते थे कि पत्रकार को दरबारी और सरकारी कभी नहीं होना चाहिए। लाउड होने को निडरता का पैमाना मानने वाले एंकरों को याद रहना चाहिए कि निडरता, सौम्यता और प्रस्तुति का चुटीला अंदाज पत्रकार को स्मृतियों में जिलाए रखता है।
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