फिर रद्द हुई परीक्षा
उत्तर प्रदेश में अध्यापकों से जुड़ी परीक्षा के पेपर लीक हुए, कानूनी कदम जो उठेंगे, वो अपनी जगह, पर उत्तर प्रदेश की व्यवस्थाओं पर प्रश्नचिह्न लगे हैं।
फिर रद्द हुई परीक्षा |
परीक्षाओं के सुचारू आयोजन से साफ होता है कि संबंधित सरकार के पास इच्छाशक्ति और शक्ति दोनों हैं। दमदार सरकार का दावा करने वाली सरकार का दम इस तरह के हादसों से कमजोर ही पड़ता है। इस तरह के हादसे तो यह बताते हैं कि व्यवस्था में अवांछनीय दलाल तत्व हावी हैं। व्यवस्थाओं में ठगों की घुसपैठ गहरी है।
इस तरह की स्थितियों से कई नौजवानों का हौसला टूटता है। भविष्य पर भरोसा खत्म होता है। आखिर पेपर लीक होते क्यों हैं? आसान जवाब है-भ्रष्ट तत्व बहुत अंदर तक पैठ बना चुके हैं। जवाब आसान है, पर हालात को बदलना आसान नहीं है। पेपर लीक होने का हादसा किसी एक घटना का नहीं प्रक्रिया का मामला है। समूची प्रक्रिया से जुड़े सवाल उठ खड़े होते हैं। प्रक्रिया पारदर्शी हो। कई स्तरों पर नियंत्रण हो यह जितना जरूरी है उतना मुश्किल है। पर यह असंभव नहीं है। इसी देश में केंद्रीय लोक सेवा आयोग कई परीक्षाओं का आयोजन कराता है। इस आयोग पर सवाल न उठते। केंद्रीय लोक सेवा आयोग की व्यवस्थाएं उत्तर प्रदेश में क्यों लागू नहीं की जा सकतीं।
पर ऐसा आसान न होगा। हर व्यवस्था में निहित स्वार्थी तत्व अपने लिए कुछ-न-कुछ रास्ता निकाल लेते हैं। इन तत्वों पर प्रहार के लिए निर्मम राजनीति इच्छाशक्ति की जरूरत है। पर उत्तर प्रदेश सरकार को समझना चाहिए कि परीक्षाओं का सुचारू और पारदर्शी आयोजन एक राजनीतिक सवाल भी है। लाखों नौजवान परीक्षार्थी पेपर लीक से परेशान हुए, उनके घर वाले भी परेशान हुए। उन्हें राजनीतिक तौर पर नाराज रखना किसी भी राजनीतिक दल के लिए ठीक नहीं है। सत्तारूढ़ दल को इस संबंध में कड़े कदम उठाने चाहिए। कदम ऐसे हों कि लगे कि ये ठोस हैं और वास्तविक हैं।
पेपर लीक करने वालों को इस तरह का दंड मिलना चाहिए कि आगे कोई इस तरह की हिम्मत ना कर सके। अपराध करने के परिणाम अगर अपराधियों को डराते हैं, तो इससे भविष्य के अपराधों पर रोकथाम लगती है। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक सत्तारूढ़ दल की जिम्मेदारी बनती है कि सुनिश्चित किया जाए कि लाखों नौजवानों के भविष्य के साथ खिलवाड़ न हो, उनके भविष्य में लीकेज ना हो। उम्मीद की जानी चाहिए उप्र से जुड़ी परीक्षाओं में यह आखिरी लीकेज होगी।
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