स्वास्थ्य क्षेत्र पर तवज्जो
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार का कुल व्यय 2017-18 में बढ़कर जीडीपी के 1.35 फीसद पर पहुंच गया जबकि 2013-14 में यह 1.15 फीसद था।
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राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) अनुमान से यह जानकारी मिली है, जो सोमवार को जारी किया गया। उत्साहजनक यह है कि इस दौरान नागरिकों का प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च घटा। 2017-18 में यह 2,097 रुपये रहा जबकि 2013-14 में 2,336 रुपये था।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र द्वारा तैयार यह पांचवीं एनएचए रिपोर्ट है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2014 में संसाधन केंद्र को राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा तकनीकी सचिवालय के रूप में नामित किया था। एनएचए अनुमान विश्व स्वास्थ्य संगठन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत स्वास्थ्य लेखा प्रणाली, 2011 के मानकों के आधार पर तैयार किए जाते हैं।
स्वास्थ्य व्यय संबंधी अद्यतन अनुमान से पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में ज्यादा व्यय करने की ओर सरकार तत्पर है यानी आम जन की स्वास्थ्य चिंताओं के प्रति सरकार फिक्रमंद हुई है। प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य खर्च में कमी से इस बात की भी पुष्टि होती है कि सरकार द्वारा मुहैया कराई जा रही स्वास्थ्य सेवाओं में आम लोगों का भरोसा बढ़ा है। इस रुझान से सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं का दायरा बढ़ाने में निश्चित ही मदद मिलेगी।
कहना न होगा कि हाल के वर्षो में जिस तरह केंद्र में आरूढ़ मोदी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र पर फोकस किया है, उससे आने वाले समय में स्वास्थ्य क्षेत्र पर कुल खर्च में सरकार की हिस्सेदारी में इजाफा होना तय है। बेशक, सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास आदि क्षेत्रों पर ज्यादा तवज्जो दे रही है। कहना न होगा कि कल्याणकारी राज्य की परिकल्पना मूर्ताकार करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की महती भूमिका हो सकती है। सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र सीधे आम जन से जुड़ा क्षेत्र है।
इस क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ाने और आधारभूत ढांचे के निर्माण में ज्यादा निवेश किया जाए तो रोजगार सृजन का बड़ा वाहक बन सकता है। स्वास्थ्यकर्मियों के शिक्षण-प्रशिक्षण की खासी संभावनाएं उभर आने से रोजगार सृजन को नये आयाम मिल सकते हैं। कहना न होगा कि आने वाले समय में स्वास्थ्य क्षेत्र अर्थव्यवस्था में रोजगार और आम जन के कल्याण के लिहाज से महती भूमिका निभाने की ओर उद्यत है।
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