घोषणा के बाद
शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की घोषणा के बाद भी किसान धरना स्थलों पर डटे हुए हैं।
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वे अब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) संबंधी कानून बनाने की संबंधी अपनी मुख्य मांग पर अड़ गए हैं। प्रधानमंत्री की घोषणा के एक दिन बाद शनिवार को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि उसके पूर्व निर्धारित कार्यक्रम जारी रहेंगे और आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति के लिए रविवार को अपनी बैठक में मोर्चा अंतिम फैसला करेगा। इस बीच एसकेएम (जिसमें चालीस किसान संघ शामिल हैं) ने 22 नवम्बर को लखनऊ में होने वाली किसान महापंचायत में शामिल होने के लिए किसानों से अपील की है। किसान 26 नवम्बर को अपने आंदोलन का एक साल पूरा होने पर राजधानी दिल्ली में ट्रैक्टर-बैलगाड़ी के साथ प्रदर्शन करेंगे।
साथ ही, सभी प्रदर्शन स्थलों पर ज्यादा-से-ज्यादा संख्या में एकत्रित होंगे। इसके बाद 29 को आरंभ होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हर दिन 500 प्रदर्शनकारी ट्रैक्टर-ट्रालियों से संसद तक मार्च निकालेंगे। किसान आंदोलन में अब तक 670 से ज्यादा किसानों की मृत्यु हुई है। किसानों की यह भी मांग है कि मृत किसानों के पीड़ित परिवारों को मुआवजा और रोजगार देकर समर्थन दिया जाए। मृत किसानों को संसद सत्र में श्रद्धांजलि देने के साथ ही उनके नाम पर स्मारक बनाया जाना चाहिए। बिजली संशोधन विधेयक वापस लेने की मांग किसानों ने प्रमुखता से उठाई है। जिस दृढ़ता से बीते एक साल से किसान आंदोलनरत हैं, सराहनीय है, लेकिन शुरू से ही एक तरह की हठधर्मिता दिखाई दी।
आंदोलन के फैसलाकुन होने पर संदेह होने लगा था। यह भी लगा कि किसान नेताओं के बीच आंदोलन पर वर्चस्व की लड़ाई हो रही है। ऐसे में कहना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक परिपक्वता दिखाई है। हालांकि कुछ राजनीतिक दल, अच्छी बात है कि किसानों ने उन्हें आंदोलन के दौरान अभी तक अपना मंच साझा नहीं करने दिया है, प्रधानमंत्री की घोषणा को पांच राज्यों में जल्द होने वाले एसेंबली चुनावों से जोड़ रहे हैं। सरकार के अहंकार की हार बता रहे हैं, लेकिन समझा जाना जरूरी है कि कृषि संबंधी नीतियों का कारगर क्रियान्वयन हमेशा उपेक्षित रहा है। इस क्षेत्र का कायाकल्प करने की गरज से जरूरी सुधार लाने ही होंगे। इस पर राजनीति करने की गुंजाइश नहीं है। यह तथ्य अनदेखा नहीं किया जा सकता।
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