चीन से बिगड़ते रिश्ते
चीन की निरंतर उकसाने वाली हरकतों के कारण भारत के साथ उसके रिश्तों में खिंचाव बढ़ता जा रहा है।
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यहां तक कि भारत ने शुक्रवार को स्वीकार कर लिया कि दोनों देश आपसी संबंधों को लेकर ‘विशेष तौर पर खराब दौर’ से गुजर रहे हैं क्योंकि चीन ने समझौतों का उल्लंघन करते हुए कुछ ऐसी गतिविधियां की हैं जिन्हें लेकर उसके पास कोई ‘विसनीय स्पष्टीकरण’ नहीं है।
भारत ने चीन से साफ कहा है कि चीनी नेतृत्व को जवाब देना चाहिए कि द्विपक्षीय संबंधों को वे किस ओर ले जाना चाहते हैं। विदेश मंत्री एस जयशंकर के अनुसार चीन को बता दिया गया है कि शांति और स्थिरता बहाली के लिए पूर्वी लद्दाख से सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया में प्रगति जरूरी है, और द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने का आधार यही है।
जयशंकर ने सिंगापुर में ब्लूमबर्ग न्यू इकोनॉमिक फोरम में ‘वृहद सत्ता प्रतिस्पर्धा: उभरती हुई विश्व व्यवस्था’ विषय पर आयोजित गोष्ठी में कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि चीन को इस बारे में कोई संदेह है कि हमारे संबंधों में हम किस मुकाम पर खड़े हैं और क्या गड़बड़ है।
हम आपसी संबंधों में विशेष तौर पर खराब दौर से गुजर रहे हैं। उनके पास अपनी हरकतों को लेकर अब तक ऐसा स्पष्टीकरण नहीं है जिस पर भरोसा किया जा सके। अब यह सोचा जाना चाहिए कि वे हमारे संबंधों को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं, लेकिन इसका जवाब उन्हें देना है।’
भारत और चीन की सेनाओं के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध के हालात बीते वर्ष पांच मई को बने थे। पैंगांग झील से लगते इलाकों में दोनों के बीच हिंसक संघर्ष भी हुआ था। पिछले वर्ष 15 जून को गलवान घाटी में हिंसक झड़प के बाद तनाव और भी बढ़ गया था।
हालांकि कई दौर की सैन्य और राजनयिक वार्ता के बाद दोनों पक्ष फरवरी में पैंगांग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से तथा अगस्त में गोगरा इलाके से अपने सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी हो गए थे। अब खबर है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दो गांव बना लिए हैं।
उपग्रह चित्रों से इसकी पुष्टि हो चुकी है। भूटान भी उसकी हरकतों से परेशान है। भारत को क्वाड (चतुभरुज गुट) के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर भी नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के साथ लामबंद होना चाहिए।
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