हिंदू, हिंदुत्व और कांग्रेस
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अपनी सीमित समझ के अनुसार हिंदू और हिंदुत्व के बीच जो फर्क बताया है, वह बहुत सारे संदेह खड़े करता है। राहुल ने कहा है कि हम हिंदू हैं, लेकिन हमें हिंदुत्व पसंद नहीं है।
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उनकी समझ के अनुसार हिंदू शांतिपूर्ण, सहिष्णुतापूर्ण, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्षतापूर्ण होता है जबकि हिंदुत्व कट्टरपंथी, असहिष्णु, धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध एक आक्रामक विचारधारा है जिसे वह लोकतंत्र के लिए घातक मानते हैं और कांग्रेस तथा दूसरी विचारधाराओं के ऊपर यह दायित्व डालते हैं कि वे हिंदू होकर हिंदुत्व का विरोध करें। इस विचार पर थोड़ी सी गंभीरता से विचार किया जाए तो हिंदुत्व का लेकर यह समूची चिंता निश्चित ही बचकानी और खोखली लगती है। वे उस हिंदुत्व की आलोचना करते हैं, जो भारत के दीर्घकालिक इतिहास, मुगलोत्तर संस्कृति, धार्मिंक परंपराओं, कर्मकांडों, तीज-त्योहारों और जन आस्थाओं से निर्मिंत है।
भाजपा का हिंदुत्व, चाहे जिसे जितना भी खटके, उसने हिंदुत्व को ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत के सहारे एक बड़ी विचाराधारा के रूप में खड़ा कर दिया है और यह उसने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और चुनावों में निरंतर होती हुई अपनी जीत के जरिए किया है। भाजपा के हिंदुत्व की जन-स्वीकृति किसी सैन्य हमले या किसी गैर-लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सहारे नहीं हुआ है। जैसा कि आधुनिक विश्व के कुछ गैर-हिंदुत्ववादी धर्मप्रेरित राजनीतिक विचारधाराओं में देखने को मिलता है। राहुल गांधी और कांग्रेस का सबसे बड़ा संकट यह है कि वे यह समझ नहीं पा रहे हैं कि इस अखिल भारतीय उपस्थिति दर्ज कराने वाले हिंदुत्व का वे करें तो क्या करें।
वे जिस मध्यमार्गी और धर्मनिरपेक्षतावादी राजनीतिक विचारधारा की वकालत करते थे, वह देखते ही देखते कैसे ध्वस्त हो गई और वे उसे बचा नहीं पाए। भारत विभाजन से लेकर कश्मीर में हिंदुओं के पलायन तक बहुत सी ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं हैं, जो कथित उदारपंथी धर्मनिरपेक्षतावादी विचार को एकदम असफल सिद्ध कर देती हैं। आज भाजपा के हिंदुत्व से घबरा कर वे जिस हिंदू को गढ़ना चाहते हैं और जिसका राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं, वह वस्तुत: खोखला विचार है जिसमें भाजपा के हिदुत्व का विरोध करने की शक्ति कभी नहीं आ सकती। कांग्रेस को अपनी बौखलाहट से बाहर निकल कर ठंडे मन से भाजपा के हिंदुत्व के राजनीतिक विकल्प पर विचार करना चाहिए।
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