आपदा से विस्थापन
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 31 अक्टूबर से शुरू हो रहे जलवायु परिवर्तन से संबंधित चिंताओं पर दुनिया के शीर्ष नेताओं के विचार मंथन ‘ग्लासगो सम्मेलन’ में हिस्सा लेने जा रहे हैं।
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इस बीच एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की रिपोर्ट ने भारत की चिंताएं बढ़ा दी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के असर के कारण हो रहा विस्थापन अनुमान से बहुत ज्यादा है, और कुदरती आपदाओं के कारण भारत में विस्थापित हो रहे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
गरीब लोग इन आपदाओं का नुकसान सहन नहीं कर पा रहे हैं। हम देखते हैं कि मौसमी बदलाव के कारण लगातार अलग-अलग इलाकों में आपदाएं आने की घटनाएं बढ़ी हैं, इससे बड़े पैमाने पर विस्थापन की आशंका बनी रहती है।
अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायर्नमेंट एंड डवलपमेंट के शोधकर्ताओं का आकलन है कि देश के सबसे गरीब लोग इस कारण अपने घरबार छोड़कर दूसरी जगहों पर जाने को मजबूर हैं। भारत में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है। इसकी सोमवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार सूखे या बाढ़ के कारण, फसलों की बर्बादी और चक्रवातों के कारण तथा मछली पकड़ने में आने वाली बाधाएं विस्थापन की सबसे बड़ी वजह रहीं।
देश के बहुत से गरीब लोग, जिनमें छोटे किसान शामिल हैं, मौसमी आपदाओं के कारण होने वाली बर्बादी को नहीं सह पा रहे हैं। देश में समुद्री जलस्तर और तापमान बढ़ने तथा चक्रवात जैसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ेगी। एक अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्था जर्मन वॉच हर साल ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स जारी करती है। 2021 की इसकी सूची में भारत टॉप 10 में है। 2020 में भारत में अनेक भीषण कुदरती आपदाएं आई। टिड्डी दल का अब तक का सबसे बड़ा हमला हुआ, तीन चक्रवाती तूफानों, गर्मी की लहर, बाढ़ ने सैकड़ों जानें लीं और हजारों लोगों को बेघर कर दिया।
भारत ने अब तक यह नहीं बताया है कि वह शून्य कार्बन उत्सर्जन करना चाहता है या नहीं और करेगा तो कैसे करेगा। दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक और सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाला देश चीन कह चुका है कि 2060 तक कार्बन शून्य हो जाएगा। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि भारत उत्सर्जन घटाने पर काम कर रहा है। खतरे की घंटी बज रही है, भारत को देशवासियों के हित में तुरंत कदम उठाने होंगे।
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