बेवजह का बिजली संकट
देश गंभीर कोयला संकट का सामना कर रहा है। समझा जाता है कि संकट जल्द दूर नहीं हुआ तो पूरे देश को गंभीर बिजली संकट का सामना करना पड़ सकता है।
बेवजह का बिजली संकट |
देश में कोयला आधारित लगभग 17 पावर प्लांटों में कोयला लगभग खत्म होने को है, इसका असर बिजली उत्पादन पर पड़ा है। उत्तर प्रदेश में बिजली उत्पादन में भारी कमी आ गई है। छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश और हरियाणा में क्षमता से बेहद कम उत्पादन हो रहा है।
विद्युत मंत्री कोयले की कमी से इनकार कर रहे हैं, वहीं केंद्र इस मामले में गंभीर है। दुर्गा पूजा और त्योहारों के मौसम को देखते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने बिजली उत्पादन और आपूर्ति की स्थिति की समीक्षा की है। कोल इंडिया को बिजलीघरों को कोयले की आपूर्ति बढ़ाकर 15.5 से 16 लाख टन प्रति दिन करने के निर्देश के साथ ही 20 अक्टूबर के बाद इसे बढ़कर 17 लाख टन प्रति दिन करने को कहा गया है।
मानसून के दौरान कोयला खनन में आई गिरावट और कोरोना की दूसरी लहर के बाद बढ़ी बिजली की मांग को कोयला संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक देश में पर्याप्त कोयला है। लेकिन राज्यों के अंतर्गत आने वाले पावर प्लांट्स में इसकी कमी की अलग-अलग वजहें होती हैं।
पावर प्लांट भारत के किसी भी कोने में हो, कोयला पहुंचाने में तीन दिन से ज्यादा का समय नहीं लगता। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के पावर प्लांट्स में यह कुछ घंटों में पहुंचाया जा सकता है, ऐसे में यह संकट बेवजह बनाया गया प्रतीत होता है।
गत वर्ष अप्रैल से सितम्बर के बीच के छह माह में कोयले का उत्पादन 28.2 करोड़ टन था। इस साल यह 31.5 करोड़ टन रहा यानी इसमें 12 फीसद की बढ़ोतरी। कोरोना काल में उत्पादन पर ज्यादा असर नहीं पड़ा क्योंकि सरकारी कंपनियां काम कर रही थीं।
बिजली उत्पादन में कमी का असर ग्रामीण क्षेत्रों पर पड़ना शुरू हो गया है जबकि विद्युत मंत्रालय ने वितरण कंपनियों को बिजली कटौती न करने की हिदायत दी है। देश में बिजली उत्पादन क्षमता 3.9 लाख मेगावाट है, लेकिन अधिकतम मांग अब तक 2 लाख मेगावाट से ज्यादा नहीं रही।
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