महंगाई की सुनामी
कोरोना महामारी की दूसरी लहर जैसे जैसे दम तोड़ रही है आफत की एक और लहर परवान चढ़ रही है। कोरोना की लहर से तो लोग किसी तरह बच भी गए पर अब जो लहर चढ़ रही है उससे कोई नहीं बचने वाला।
![]() महंगाई की सुनामी |
यह लहर है भयंकर महंगाई की, जिसके असर से सब पीड़ित हैं, लेकिन विडम्बना है कि कोई कराह नहीं रहा। सब अपनी किस्मत को कोस रहे हैं और हाथ मल रहे हैं। कोरोना लाखों लोगों की नौकरियां खा गया और लाखों लोगों का वेतन आधा अधूरा कर गया। लोग रिश्तेदारों और पहचान वालों से मांगकर या कर्ज लेकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं।
खाद्य तेलों के साथ ही पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के लगातार बढ़ते दाम जीना दूभर किए हुए हैं। इस साल भी रसोई गैसे के दाम जनवरी से हर महीने पच्चीस-पच्चीस रुपये के हिसाब से बढ़ाए जाते रहे हैं। अब इसमें और पंद्रह रुपये की वृद्धि कर दी गई है। गरीबों के काम आने वाला पांच किलो का सिलिंडर भी पांच सौ रुपये से अधिक महंगा है। चाहे सब्सिडी वाला हो, बिना सब्सिडी वाला या कॉमर्शियल हो, हर तरह के सिलिंडर के दाम आसमान छू रहे हैं।
सरकार का एक मासूम सा तर्क है कि तेल और गैस के दाम पेट्रोलियम कंपनियां तय करती हैं और यह रेट अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के आधार पर निर्धारित होते हैं। इन पर नियंत्रण किसी सरकार के बस में नहीं है। यह माना जा सकता है कि फिलहाल पेट्रोलियम पदाथरे के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कुछ ऊपर चल रहे हैं, लेकिन कोरोना काल में जब यह दाम काफी नीचे आ गए थे, तब भी देश के उपभोक्ताओं पर दाम बढ़ाकर लगातार बोझ डाला गया था।
पेट्रोल-डीजल के दाम न तो केंद्र सरकार घटाना चाहती है और न ही राज्य सरकारें, सभी इन पर बेइंतहा शुल्क वसूलते हैं, इसीलिए हमेशा एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं। कई बार इन्हें जीएसटी के दायरे में लाने की कवायद भी हुई, लेकिन इस पर कभी सहमति बनी ही नहीं।
खजाना भरने का यह आसान रास्ता सरकारें बंद नहीं करना चाहती। पेट्रोलियम पदाथरे के दामों में दो तिहाई हिस्सा तो केंद्र और राज्यों के करों का होता है। जनता परेशान है क्योंकि ईधन, दूध और घर चलाने के लिए राशन खरीदना उसकी मजबूरी है चाहे दाम कितने ही बढ़ जाएं, लेकिन जनता कब तक ऐसा झेलेगी। ऐसा न हो कि लोगों की बिगड़ती माली हालत सरकारों का ही पसीना न छुड़ा दे।
Tweet![]() |