जनजीवन और प्रदर्शन
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि वह विचार करेगा कि क्या किसी कानून की वैधता को चुनौती देने वाले संगठनों या व्यक्तियों को उसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति है, जब मामला विचाराधीन हो।
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तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे एक किसान संगठन किसान महापंचायत की याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने पूछा कि आंदोलनकारी किसान किसलिए विरोध कर रहे हैं, जब अदालत ने इन कानूनों पर पहले ही रोक लगा रखी है।
किसान महापंचायत ने दिल्ली के जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ करने की अनुमति देने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का अनुरोध किया है। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि मामला विचाराधीन होने और इन कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक की स्थिति में आप कैसा ‘सत्याग्रह’ करना चाहते हैं, आंदोलन किसलिए।
आपने समूचे शहर को घेर रखा है और अब शहर में प्रवेश करके प्रदर्शन करना चाहते हैं। इससे पूर्व नोएडा निवासी एक महिला की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट की अन्य पीठ ने 30 सितम्बर को कहा था कि सड़कों और राजमागरे को लगातार अवरुद्ध नहीं रखा जा सकता। महिला ने शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिका में कहा था कि नोएडा से दिल्ली तक उसे लगने वाला बीस मिनट का समय दो घंटा हो गया है क्योंकि आंदोलनकारी किसानों ने रास्ते जाम कर रखे हैं। बेशक, किसी भी आंदोलन से आम जन को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
किसानों ने भी बारंबार कहा है कि वे जनजीवन को किसी भी सूरत में अवरुद्ध नहीं करना चाहते। पुलिस प्रशासन ने रास्तों को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया है। आवाजाही के लिए भी जगह नहीं छोड़ी है। नवम्बर, 2020 से चले आ रहे किसान आंदोलन में अभी तक 600 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। कृषि कानूनों के संबंध में शीर्ष अदालत ने एक कमेटी गठित की थी।
कमेटी ने मार्च, 2021 में सीलबंद रिपोर्ट पेश कर दी थी, लेकिन अभी तक फैसला नहीं लिया गया है। जरूरी है कि जल्द उस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और किसान आंदोलन के शांतिपूर्ण समाधान के लिए जरूरी प्रयास किए जाएं। मानकर चलना सही नहीं है कि किसानों को राजनीतिक स्वाथरे के चलते बरगला दिया गया है। संभवत: यही संशय आंदोलन का नतीजाकुन फैसला नहीं होने दे रहा।
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