सियासी रणनीति तेज
पश्चिम बंगाल का चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे यहां का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है।
![]() सियासी रणनीति तेज |
कई विधायकों, सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं के तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी सुप्रीमो और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बाजी को अपनी तरफ करने की जद्दोजहद में जी-जान से जुट गई हैं। निश्चित तौर पर ममता को भाजपा ने घेर लिया है, और उनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की कोशिश में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पुरजोर तरीके से लग गया है। पहले अमित शाह, फिर पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की ताबड़तोड़ रैली के बाद 23 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वहां के एक कार्यक्रम में शामिल होने की घोषणा के बाद यह स्वाभाविक रूप से परिलक्षित होता दिख रहा है कि भाजपा इस सूबे को तृणमूल के शिकंजे से खींच कर अपनी झोली में डालने को कितनी बेताब है।
एक तरह से 23 को सुभाष चंद्र बोस की जयंती के कार्यक्रम में शिरकत कर प्रधानमंत्री मोदी उसी दिन अनौपचारिक रूप से चुनावी रैली का आगाज भी करेंगे। पिछले कई वर्षो से भाजपा इस पूर्वी राज्य में अपनी सरकार बनाने की रणनीति पर काम कर रही थी। पहले पंचायत चुनाव में संतोषजनक परिणाम लाना, फिर लोक सभा चुनाव में 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल कर भाजपा ने यह जतला दिया कि वह 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कितनी संजीदा है। भाजपा ने लोक सभा चुनाव में 128 विधानसभा क्षेत्रों में भी बढ़त हासिल की थी।
लाजिमी है कि भाजपा के लिए यहां माहौल सकारात्मक है। जहां तक बात तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए शुभेंदु अधिकारी की है तो ममता ने उनकी सीट नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान कर बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। ममता की रणनीति शुभेंदु को उनके ही गढ़ में घेरने की है, तो भाजपा की रणनीति भी कमोबेश ऐसी ही है। वह भी चाहती है कि ममता दो जगह से न लड़कर सिर्फ नंदीग्राम से चुनाव लड़ें। ममता की पारंपरिक सीट भवानीपुर है, जहां से वह जीत हासिल करती रही हैं। इन सबके बीच वाम दल और कांग्रेस के बीच गठजोड़ कितनी समझदारी से होता है, इस पर भी नजर रखने की जरूरत है, मगर इतना तो कहा ही जा सकता है कि भाजपा खेल में फिलहाल आगे है। अगर भाजपा आक्रामकता के साथ आगे बढ़ेगी तो यहां ‘कमल’ खिलाना आसान होगा।
Tweet![]() |