फुटपाथ पर मौत
गुजरात के सूरत जिले में मंगलवार को सड़क के किनारे सो रहे राजस्थान के तेरह प्रवासी मजदूरों और एक साल की बच्ची समेत पंद्रह लोगों की डंपर से कुचल कर हुई मौतों ने एक बार फिर इंसानी लापरवाही और प्रशासनिक कोताही को उजागर कर दिया है।
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मृतकों में से तेरह दक्षिण राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में कुशलगढ़ के पास के गांवों के थे जबकि एक मध्य प्रदेश का प्रवासी मजदूर था। हादसा सूरत से करीब 60 किमी. दुर कोसांबा गांव के पास हुआ। हादसे के समय बीस से ज्यादा प्रवासी मजदूर किम-मांडवी रोड के किनारे फुटपाथ पर सो रहे थे। तभी गन्ने से भरे ट्रैक्टर से टक्कर के बाद एक डंपर का चालक अपने वाहन पर नियंत्रण खो बैठा। मरने वाले खेतों और निर्माण स्थलों पर दिहाड़ी पर मजदूरी करने गुजरात पहुंचे थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हादसे पर दुख जताते हुए मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख तथा घायलों को पचास-पचास हजार रुपये की सहायता राशि देने की घोषणा की है।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भी त्रासदी पर दुख व्यक्त करते हुए मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की राशि देने का ऐलान किया है। एकाएक हुए हादसे का शिकार हुए मजदूरों की चीखों ने पास के इलाकों को गुंजा दिया। इस प्रकार के हादसे आये दिन देश के किसी न किसी स्थान पर होते हैं, मृतकों के परिवारों को मुआवजा देने और घायलों को सहायता राशि देने का ऐलान होता है, और फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है। लेकिन यह सवाल अनुत्तरित ही रहता है कि आखिर, ऐसे हादसों पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही। कमी कहां रह जाती है।
दरअसल, संभवत: भारत ही ऐसा देश है जहां सड़क परिवहन में नियमों और तौर-तरीकों की सिरे से अनदेखी होती है। सड़कें भी इस प्रकार त्रुटिपूर्ण तरीके से बनाई जाती रही हैं कि इनका इस्तेमाल करने वालों का कोई जोर नहीं रह जाता और वे गाहे-बगाहे हादसों का शिकार हो जाते हैं। ओवरलोडिंग भी हादसों का बड़ा कारण है, जो शायद सूरत की घटना का भी कारण है। चौक-चौराहों पर इस बात की निगरानी करने वाला स्टाफ ओवरलोडिंग और नशा करके वाहन चलाने वालों को नजरंदाज कर देता है, और उनकी लापरवाही किसी न किसी बड़े हादसे का कारण बन जाती है। कहना न होगा कि थोड़ी सजगता बरत कर ऐसे हादसों को टाला जा सकता है।
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