विरोधाभास मंजूर नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि मुकदमों के दौरान कारोबारियों और ट्रांसपोर्टरों के मवेशियों को जब्त करने संबंधी नियमों को वापस ले या इनमें संशोधन करे वरना अदालत इन नियमों पर रोक लगा देगी।
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मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबड़े, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रह्मण्यम की पीठ ने कहा कि कानून की धारा 29 में साफ कहा गया है कि पशुओं को तभी जब्त किया जा सकता है, जब आरोपी को कानून के तहत दोषी ठहराते हुए सजा दे दी जाए। मवेशी लंबे समय से इंसानों की आजीविका का स्त्रोत हैं। इन्हें इंसानों से दूर नहीं किया जा सकता। स्पष्ट किया कि यहां कुत्ते-बिल्ली जैसे पालतू पशुओं की बात नहीं हो रही। उन पशुओं की बात हो रही है, जिनके सहारे लोग जीते हैं। पीठ ने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं होने दे सकते कि नियम, कानून के प्रावधान का विरोधाभासी हो। अदालत ने एक हफ्ते में केंद्र से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है।
शीर्ष अदालत ने बुफैलो ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन की याचिका पर दो जुलाई, 2019 को केंद्र से जवाब मांगा था। एसोसिएशन ने इन नियमों के तहत कारोबारियों के पशुओं को जब्त करके गौशाला भेजने के अधिकार प्रशासन को सौंपे जाने के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त महान्यायवादी जयंत के सूद ने कहा कि पशुओं पर अत्याचार होता है, इसलिए ये नियम अधिसूचित किए गए हैं। एसोसिएशन ने अपनी याचिका में 2017 के इन नियमों को चुनौती दी थी। उसका आरोप था कि उन्हें जबरन उनके मवेशियों से वंचित किया जा रहा है। नियमों के तहत जब्त मवेशियों को ‘गोशाला’ भेजा जा रहा है। उनके खिलाफ पशु क्रूरता निरोधक कानून के तहत मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं।
मवेशी उनके परिवारों की आजीविका का साधन हैं। उन्हें उनसे दूर नहीं किया जा सकता। एसोसिएशन ने यह भी कहा था कि 2017 में बनाए गए नियम 1960 से लागू कानून के दायरे से बाहर निकल गए हैं। गौरतलब है कि पशु क्रूरता निरोधक कानून, 1960 के तहत पशु क्रूरता विरोधक (केस प्रॉपर्टी की देखरेख एवं रखरखाव) नियम 2017 में बनाए गए और 23 मई, 2017 को अधिसूचित किए गए थे। दरअसल, शीर्ष अदालत किसी नियम के कानून-सम्मत न होने या कानून के बुनियादी आशय को ही खारिज करने वाला होने पर इस प्रकार से व्यवस्था देते हुए दखल देती है। इस मामले में भी ऐसा ही किया गया है।
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