वैक्सीन वार
देश में कोविड-19 से बचाव करने वाले टीकाकरण की शुरुआत अभी नहीं हुई है, लेकिन सियासत ही नहीं बल्कि फार्मा उद्योगों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो गई है कि उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे?
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विपक्षी नेताओं का मानना है कि स्वेदशी वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को मंजूरी देने में अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन नहीं किया गया और बहुत जल्दबाजी में इसके इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दे दी गई। सत्तारूढ़ भाजपा के केंद्रीय नेताओं की ओर से विपक्ष के आरोपों पर पलटवार किया गया। यह सच है कि कुछ विपक्षी नेताओं के आरोप दुराग्रहपूर्ण थे। यह कहना अपरिपक्व राजनीति को दर्शाता है कि कोरोनारोधी वैक्सीन भाजपा का है और इसके इस्तेमाल से इंसान नपुंसकता का शिकार हो सकता है। कोरोना जैसे संवेदनशील मुद्दों पर इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयानों से नागरिकों के बीच दहशत और अविश्वास का वातावरण बनता है।
कोरोना ने भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सामने गंभीर चुनौतियां पेश की हैं। इस कठिन समय में विशेषकर राजनीतिज्ञों और सेलिब्रिटिज को बहुत ही सोच-समझकर बयानबाजी करनी चाहिए। क्योंकि राजनीति और समाज में उनकी बातों का गहरा असर होता है। यह जरूर है कि भारत बायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा विकसित ‘कोवैक्सीन’ का फेज 3 ट्रायल अभी पूरा नहीं हुआ है। जाहिर है कि इस पर सवाल तो खड़े होंगे ही। गौर करने वाली बात यह भी है कि कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी सवाल खड़े किए हैं कि कोवैक्सीन के फेज-3 ट्रायल पूरा हुए बगैर ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी कैसे दे दी? डीसीजीआई की ओर से इन आशंकाओं का निराकरण करना बहुत आवश्यक है।
अभी यह विवाद चल ही रहा था कि सीरम इंस्टीटय़ूट के कार्यकारी अधिकारी अदार पूनावाला के विवादास्पद बयान ने फार्मा उद्योगों के बीच शीतयुद्ध की संभावनाओं को बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि फाइजर, माडर्ना और कोविशील्ड वैक्सीन ही प्रभावकारी है और बाकी पानी है। पूनावाला के इस अपरिपक्व और गैरजरूरी बयान पर भारत बॉयोटेक के चीफ कृष्णा इल्ला ने भी पलटवार किया। अच्छा हुआ कि पूनावाला की सफाई के बाद दोनों फार्मा कंपनियों के बीच टकराव खत्म होता दिखाई दे रहा है, लेकिन नागरिकों के मन में अविश्वास की जो खाई पैदा हुई है, उसे पाटने में काफी समय लगेगा।
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