राजनयिकों का पलटवार
भारत में चल रहे किसान आंदोलन के बारे में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की बिन मांगी सलाह ने एक राजनयिक विवाद की शक्ल ले ली है।
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विदेश मंत्रालय द्वारा ट्रूडो के बयान पर आधिकारिक विरोध व्यक्त किए जाने के बाद अब कई वरिष्ठ पूर्व राजनयिकों के समूह ने ट्रूडो को निशाना बनाया है। पूरा मामला केवल अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक तौर-तरीकों से ही नहीं, बल्कि भारत की घरेलू राजनीति से भी जुड़ा है। कनाडा में भारत के पूर्व उच्चायुक्त विष्णु प्रकाश और उनके कई सहयोगियों ने ट्रूडो के बयान और भारतीय राजनीति में उसके असर को लेकर खुला पत्र जारी किया है। संभवत: यह पहला मौका है, जब कुछ वर्ष पूर्व तक सक्रिय कूटनीति से जुड़े रहे राजनयिकों ने घरेलू राजनीति में विदेशी हाथ की ओर संकेत किया है। किसान आंदोलन को लेकर भारत में राजनीतिक विभाजन स्पष्ट है।
आंदोलन के पक्ष-विपक्ष में राजनीतिक दल, कृषि विशेषज्ञ, मीडिया और बुद्धिजीवी बंटे हुए हैं। पूर्व राजनयिकों के समूह ‘इंडियन एम्बेस्डर्स ग्रुप’ ने एक पक्ष की हिमायत करने का जोखिम उठाते हुए अपने खुले पत्र में जस्टिन ट्रूडो पर निशाना साधा और कहा कि लिबरल पार्टी के मतदाताओं के एक हिस्से को खुश करने के लिए भारत के आंतरिक मामलों में स्पष्ट हस्तक्षेप है, जो पूरी तरह से अस्वीकार्य है।
पूर्व राजनयिक विष्णु प्रकाश ने ट्रूडो पर हमला बोलते हुए कहा है कि वह वोट की राजनीति के कारण भारत में चल रहे किसान आंदोलन को शह दे रहे हैं। विष्णु प्रकाश और उनके सहयोगियों का खुला पत्र आने वाले दिनों में भारत की घरेलू राजनीति के प्रति विदेशी नेताओं की प्रतिक्रिया का सामना करने के लिए एक आधार सिद्ध होगा। खुले पत्र में अमेरिका में जो बाइडेन के डेमोक्रेटिक प्रशासन को एक स्पष्ट संदेश है।
नया अमेरिकी प्रशासन यदि मानवाधिकार, नागरिक स्वतंत्रता और धार्मिक आजादी के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करता है, तो भारत की प्रतिक्रिया उतनी ही तल्ख होगी, जितनी कि ट्रूडो के बयान के बाद हुई थी। विष्णु प्रकाश और उनके सहयोगियों का कहना है कि कनाडा और अन्य देशों से व्यक्त किए गए समर्थन के कारण किसान नेताओं के रवैये में अड़ियलपन आ गया। इससे वार्ता के जरिये मध्य मार्ग निकलने की संभावना भी प्रभावित हुई। कहा जा सकता है कि ट्रूडो के बयान ने किसान आंदोलन को मजबूती प्रदान करने के बजाय उसका नुकसान किया है।
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