कश्मीर में अशांति के आसार
जम्मू-कश्मीर की पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने पहले तिरंगा न उठाने की बात कहकर एक विवाद खड़ा कर दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने इस बयान में संशोधन करके कहा कि वह एक हाथ में भारतीय गणराज्य का झंडा रखेंगी तो दूसरे हाथ में कश्मीर का पुराना झंडा पकड़ेंगी।
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उन्होेंने अपने इस बयान में भारत के प्रति किसी लगाव के कारण नहीं बल्कि राजनीतिक नाप-जोख के बाद परिवर्तन किया है। अब पुन: उन्होंने अपने ताजा बयान में कश्मीरी नौजवानों का मुद्दा उठाते हुए कहा है कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद अब लागू किए गए नये डोमिसाइल व नये भूमि कानूनों के कारण स्थानीय युवाओं के लिए नौकरियां व भूमि के अधिकार छिन लिए गए हैं।
इससे नौजवानों में बेरोजगारी और बेचैनी का भाव है। इन नौजवानों के पास महबूबा मुफ्ती के अनुसार केवल दो ही विकल्प बचेंगे। या तो वे जेल जाएंगे या फिर हथियार उठाएंगे। महबूबा मुफ्ती के इस बयान के निहितार्थ ज्यादा गूढ़ नहीं हैं। उनका यह बयान और कश्मीर के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का अनुच्छेद 370 हटाए जाने के विरुद्ध एक मंच पर आना और अनुच्छेद 370 की वापसी की मांग रखना स्पष्ट तौर पर सिद्ध करता है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के मामले में आम कश्मीरी जनता न तो केंद्र सरकार के साथ है और न उनसे सहमत है। वहां के सभी प्रमुख रजनीतिक दलों के नेता अपने मोह में महबूबा मुफ्ती की ही जुबान रखे हुए हैं और वे कश्मीर में भारत सरकार विरोधी गतिविधियों पर रोक नहीं लगने देंगे।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने भी कहा था कि चीन की मदद से एक बार फिर राज्य में अनुच्छेद 370 लागू कराया जाएगा। जाहिर है उनके इस रुख से जो परोक्ष रूप से भारत विरोधी उग्रता को बल मिलेगा और कश्मीरी नौजवानों को सरकार के विरोध में हथियार उठाने का जैसे नैतिक समर्थन मिल जाएगा। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि कश्मीर में वह स्थिति पैदा नहीं हुई है, जो भारत सरकार चाहती थी। अगर मोदी सरकार को कश्मीर में अपनी अपेक्षानुसार परिणाम चाहिए तो उसे कश्मीर के राजनीतिक और सामाजिक समूहों से गहन संवाद स्थापित करना पड़ेगा। अगर कश्मीरी जनता का एक बड़ा वर्ग भारत विरोधी बना रहा तो केंद्र सरकार की सारी कवायद निष्फल हो जाएगी और कश्मीर एक बार पुन: अशांति से घिर जाएगा।
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