हवा है खतरनाक
लग रहा था कि पिछले माह उठाए गए उपायों से प्रदूषण में कमी आएगी, मगर जो हालात दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में दिख रहे हैं, उससे चिंता की लकीर ज्यादा गाढ़ी हो चली है।
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लगातार चौथे दिन यहां की हवा गंभीर है। दिल्ली के 35 में 31 केंद्रों पर हवा गंभीर श्रेणी में दर्ज की गई है। साफ है कि यहां के लोग जहरीली हवा के बीच सांस लेने को मजबूर हैं। हालात इस बार पिछले साल के मुकाबले कम दुष्कर होने चाहिए थे, किंतु पराली जलाने की असंख्य घटनाओं ने दिल्ली, गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद, गुरुग्राम व अन्य शहरों के वातावरण को दमघोंटू बना दिया है। दुर्भाग्य यह कि इन दिनों हवा की गति भी बिल्कुल धीमी है, लिहाजा प्रदूषण के कम होने की सारी संभावनाएं छिछली हो चली है। इसका बड़ा असर यह हुआ है कि हवा के शांत पड़ने से प्रदूषक तत्व और पीएम 10 और पीएम 2.5 जैसे महीन धूलकण दिल्ली-एनसीआर से बाहर नहीं जा पा रहे हैं।
इन इलाकों में हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि सरकार को हेल्थ चेतावनी तक जारी करनी पड़ी। हालात के और ज्यादा गंभीर श्रेणी में जाने की आशंका इसलिए बलवती हो चली है क्योंकि दिवाली के कारण बाजार में ज्यादा लोग निकलेंगे। नि:संदेह वाहनों का इस्तेमाल इस दौरान काफी ज्यादा होगा। दूसरा यह कि पराली जलाने की वारदात हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के इलाकों में कम होने के बजाय बढ़ते ही जा रहे हैं। दरअसल, प्रशासनिक संस्थाओं में तालमेल की घोर कमी के चलते बेहतरी की संभावना कमतर होती जाती है। इस बार भी यही हुआ है। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) का ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (ग्रेप) लागू करने में समन्वय की कमी ने प्रदूषण को कम करने के उपायों को पलीता लगा दिया।
आश्चर्य की बात है कि इस बार अभियान चलाकर पेड़ों पर जमी धूल को हटाने का कोई प्रयास नहीं किया गया। सड़कों की धूल हटाने के लिए न तो धुलाई हो रही है और न रसायनयुक्त पानी का छिड़काव नहीं किया गया। यहां तक कि कच्ची सड़कों से उड़ने वाली धूल को रोकने के लिए रत्ती भर भी काम नहीं किया गया। सच है कि प्रदूषण की समस्या अब चरम पर है। इसे जितनी जल्दी हो, खत्म करने में ही सभी की भलाई है। सरकार और संस्थाओं के साथ जनता को भी समझदारी और अनुशासन के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना होगा। अगर इसमें थोड़ी सी भी ढील दी गई तो अंजाम बेहद खतरनाक होंगे।
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