एक और पैकेज
कोरोना महामारी की मार से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
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इस काम में उसे उन संकेतों से मदद मिल रही है, जिनसे पता चलता है कि महामारी से दरपेश चुनौती को अवसर में तब्दील किया जा सकता है। दरअसल, कोविड-19 के बावजूद भारत में विकास करने की जो क्षमता है, उस पर कोई असर नहीं पड़ा है। इसी के चलते अर्थव्यवस्था तेजी से रफ्तार पकड़ने की राह पर है।
सो, सरकार एक और राहत पैकेज देने की तैयारी में है। आगामी बजट से पहले दिए जाने वाले इस पैकेज से उम्मीद है कि घरेलू मांग खासकर शहरी उपभोक्ताओं की मांग में इजाफा हो सकेगा। गौरतलब है कि कोविड-19 की वजह से अर्थव्यवस्था पर पड़े दुष्प्रभावों से उबरने के लिए सरकार तीन प्रोत्साहन पैकेज पहले दे चुकी है। यही कारण है कि अर्थव्यवस्था मौजूदा सकारात्मक स्थिति में पहुंच सकी और लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद से अर्थव्यवस्था में लगातार सुधार दिख रहा है।
अक्टूबर माह में बड़े सुधार के संकेत मिले। बैंकों के क्रेडिट में वृद्धि हुई। अक्टूबर माह में बैंक क्रेडिट में 5.8 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भी स्थिति बेहतर है। अप्रैल से अगस्त के बीच देश में 35.73 अरब डॉलर का निवेश आया। यह पिछले वर्ष की संबद्ध अवधि से 13 फीसद अधिक है। विदेशी मुद्रा का मौजूदा भंडार रिकॉर्ड स्तर पर है, जिससे आस्ति मिलती है। देश में ग्रामीण अर्थव्यवस्था पहले से ही आर्थिक स्थिति को बेहतर करने में महती भूमिका निभा रही है।
ग्रामीण क्षेत्र से लगातार मांग निकल रही है। आगामी फसल बंपर रहने की उम्मीद है। मानसून के ठीक रहने और मनरेगा के तहत ज्यादा रोजगार दिए जाने का असर आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक रूप में दिखना निश्चित है। लेकिन अभी शहरी क्षेत्र से मांग उतनी नहीं निकल पा रही जिससे कि यह क्षेत्र भी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में अपना अपेक्षित सहयोग दे सके। इसलिए महसूस किया जा रहा है कि शहरी उपभोक्ता, जो खर्च करने से अभी अपने हाथ खींचे हुए हैं, को भी खर्च करने को प्रेरित किया जाए। हालांकि त्योहारी दिनों में वे खर्च कर रहे हैं, लेकिन इससे मकसद पूरा नहीं हो पा रहा। सो, पैकेज रूपी बूस्टर डोज से शहरी उपभोक्ता के हिल चुके विश्वास को बहाल किया जाना जरूरी है। कह सकते हैं कि आने वाले दिनों में लाया जाने वाला राहत पैकेज ज्यादातर शहरी उपभोक्ता वर्ग को लक्षित करेगा।
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