सभ्यता बनाम बर्बरता
फ्रांस के बाद अब ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में एक बंदूकधारी आतंकवादी ने पांच लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
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गृह मंत्री कार्ल नेहम्मर ने इस वारदात के बाद कहा कि शुरुआती जांच से संकेत मिलता है कि हमलावर इस्लामिक स्टेट का हमदर्द है। ऑस्ट्रिया के चांसलर सेबेस्टियन कुर्ज ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह ईसाइयत और मुसलमानों के बीच संघर्ष नहीं है बल्कि सभ्यता और बर्बरता के बीच युद्ध है। सवाल है कि इस बर्बरता का पोषण कौन कर रहा है।
वास्तविकता यह है कि यह बर्बरता हवा में से पैदा नहीं हुई है बल्कि इसके पीछे एक पूरा विचार है। यह भले ही शांतिप्रिय और लोकतांत्रिक लोगों को पागलपन लगे, लेकिन वास्तव में सुनियोजित पागलपन है, जो किसी एक देश या एक क्षेत्र तक सीमित न रहकर पूरी दुनिया में सक्रिय हो गया है। सबसे अधिक खतरनाक स्थिति यह है कि इस्लाम के भीतर से इसका कोई उत्तर नहीं निकल रहा है।
इस्लामी देश इन आतंकी घटनाओं को उतनी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जितनी उन्हें लेनी चाहिए। फ्रांस में जो हमला हुआ उसकी प्रतिक्रिया में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने जो कहा उस पर सारे मुस्लिम जगत ने नाराजगी प्रकट की, लेकिन जिन्होंने हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया और जिनके कारण राष्ट्रपति मैक्रों को बयान देना पड़ा उसकी किसी ने भी साफ शब्दों में निंदा नहीं की। यह वह स्थिति है जो समूचे गैर इस्लामिक क्षेत्रों में बेचैनी और आक्रोश पैदा कर रही है। इसमें आम समुदाय और सरकारें दोनों शामिल हैं। एशिया और यूरोप में इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिक्रियाएं अनेकानेक रूप में सामने आ रही हैं, जिन्होंने इस्लामिक कट्टरतावाद के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है।
आम जनता इनके समर्थन में खड़ी हो रही है। फ्रांस में भी आकलन किया जा रहा है कि वहां अति दक्षिणपंथी ताकतें सत्ता पर काबिज हो सकती हैं। फ्रांस और ऑस्ट्रिया से पहले कई यूरोपीय देशों में आतंकवादी संगठनों के हमले हो चुके हैं। कुछ लोगों का मानना है कि हमले ईसाइयत के विरुद्ध हो रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति यह है जो सैमुअल हंटिंगटन की भविष्यवाणी को सच होने की ओर ले जा रही है। इस्लामी जगत ने इस्लाम के नाम पर फैलाई जा रही कट्टरता और उससे उत्पन्न आतंकवाद का कोई आंतरिक समाधान नहीं खोजा तो दुनिया को सांस्कृतिक टकराहटों के उग्र होने से कोई नहीं बचा सकता।
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