सांस लेना हुआ मुश्किल
कोरोना के साथ ही दिल्ली और आसपास के बाशिंदों के लिए प्रदूषण भी जानलेवा बना हुआ है।
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हवा के लगातार जहरीली होने के चलते दिल्ली समेत नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम, फरीदाबाद आदि शहर गंभीर संकट से जूझ रहे हैं। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 400 या उससे ज्यादा न रहता हो। तमाम उपायों और सरकार के सख्त रुख के बावजूद प्रदूषण का कहर जारी है। राजधानी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में प्रदूषण का स्तर अचानक ‘गंभीर’ श्रेणी में पहुंच गया है। स्वाभाविक तौर पर यह सब दिल्ली के पड़ोसी पंजाब, हरियाणा समेत आसपास के राज्यों में पराली जलाने के कारण हुआ है। देश की राजधानी गैस चैंबर में तब्दील हो चुकी है।
बुधवार की सुबह दिल्ली में आकाश से लेकर सड़कों तक पर स्मॉग का कब्जा रहा। दिल्ली के साथ गाजियाबाद और नोएडा में भी स्मॉग से विजिबिलिटी कम रही। हालात ऐसे दिखे कि सड़कों पर गाड़ियों की लाइट दोपहर में ही जल गई। पिछले साल भी पराली नहीं जलाने को लेकर तमाम निर्देश किसानों के लिए जारी किए गए थे। यहां तक कि कम लागत या मुफ्त में पराली को काटने या हटाने के उपकरण किसानों को मुहैया कराए गए थे। वहीं पराली से खाद बनाने के विकल्प भी किसानों को बताए गए थे, मगर हालात जस-के-तस हैं।
इस साल भी किसानों ने जमकर पराली जलाई है। यह देखना होगा कि जब पराली जलाने की मनाही थी और किसान भाइयों को अन्य उपाय उपलब्ध कराए गए थे तो फिर ऐसी नौबत क्यों पैदा हुई? इस बात में कोई शक नहीं कि दिल्ली-एनसीआर का इलाका गैस चैंबर में तब्दील हो चुका है। यहां के लोग साफ-सुथरी हवा में सांस लें, इसके लिए हर किसी को अपना स्वार्थ छोड़ना होगा। किसानों को खासकर पराली जलाने से तौबा करनी होगी। हां, यह कैसे होगा; इसके लिए सरकार को अपनी जिम्मेदारियों का वहन अच्छे से करना होगा।
राज्य सरकारों को भी अपने यहां वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर सरकारी आदेश न मानने वाले किसानों के खिलाफ उचित कार्रवाई करनी होगी। हो सके तो चावल के बजाय अन्य फसल उत्पादन की सलाह किसानों को दी जाए। चूंकि धान में पानी की भी अत्यधिक आवश्यकता रहती है और उसके बाद पराली को ठिकाने लगाने की चिंता भी। इसलिए सरकार को नूतन प्रयोग और उपाय जल्द तलाशने होंगे।
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