प्रदूषण पर जंग
किसी को भी यह अंदेशा इस बार नहीं होगा कि प्रदूषण की हालत दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में इस कदर गंभीर हो जाएगी?
![]() प्रदूषण पर जंग |
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा में जो जहर घुला हुआ है, वह वाकई डरावना है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के अधिकांश हिस्सों में पराली जलाए जाने की घटनाओं से धीरे-धीरे दिल्ली और आसपास के लोगों का दम घुटने लगा है। इस बार सरकार और पर्यावरण विशेषज्ञों व संस्थाओं को यह भरोसा था कि पराली को किसानों के लिए बोझ नहीं बनने दिया जाएगा और उन्हें इसके आसान विकल्प भी मुहैया कराए गए थे।
करोड़ों रुपये की मदद भी किसान भाइयों के लिए की गई, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात। नतीजतन परेशानी इतनी ज्यादा बढ़ती जा रही है कि अब केंद्र इससे निपटने के लिए कानून बनाने की बात कह रही है। सर्वोच्च अदालत में केंद्र सरकार ने बताया कि वह पराली जलाने से रोकने और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए जल्द ही एक कानून लाने जा रही है। गौरतलब है कि प्रदूषण की बेहद गंभीर समस्या पर मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी कम गंभीर नहीं है।
उन्होंने बिना लाग-लपेट के कहा कि इस शहर में हर कोई घुट रहा है, प्रदूषण पर रोक लगाई जानी चाहिए। इस साल अक्टूबर के पहले हफ्ते से ही हवा जहरीली हो चली थी। अंतिम हफ्ता आते-आते हालात काफी खराब हो गए। कई इलाकों में तो एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 350 से ज्यादा दर्ज किए गए। यहां तक कि बिना पटाखों के इस बार दशहरा मनाया गया, इसके बावजूद पिछले पांच साल में सबसे प्रदूषित दशहरा इस बार का रहा। कुल मिलाकर हवा बहुत खराब कैटेगरी में दर्ज हुई है। हां, कानून बना देने से क्या कुछ हासिल होगा, इस बारे में भी विचार करना होगा।
चूंकि प्रदूषण से निपटने के लिए पहले से सख्त कानून बने हुए हैं, किंतु इसपर अमल नहीं किया जाता या कराया जाता है। प्रदूषण को सबसे ज्यादा बढ़ाने वाले कारक के तौर पर पराली को जिम्मेदार ठहराया जाता है और इसे जलाने वालों के खिलाफ सख्त कानून भी हैं, लेकिन सरकारें कार्रवाई करने से डरती हैं। उन्हें किसानों के वोट नहीं देने का डर सताताैहै। इस लिहाज से हर किसी को यह देखना होगा कि जो भी कानून हैं या नया कानून बनेगा, उसे अनुशासित रूप से और ईमानदारी के साथ कैसे लागू कराते हैं।
Tweet![]() |