अपने-अपने दांव
काफी जद्दोजहद के बाद आखिरकार बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फाइनल हो गया है।
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राज्य में आरजेडी 144 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कांग्रेस को 70 सीटें दी गई हैं। सीपीएम को 4 सीटें, सीपीआई को 6, सीपीआई माले को 19 सीटें दी गई हैं। हेमंत सोरेन की जेएमएम को आरजेडी अपने कोटे से सीट देगी। वहीं कांग्रेस वाल्मीकिनगर लोक सभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उम्मीदवार उतारेगी। कांग्रेस को पिछले चुनाव (2015) के मुकाबले करीब दोगुनी सीटें मिली हैं। सीटों को अंतिम रूप देने के मामले में फिलहाल तो महागठबंधन ने राजग से बाजी मार ली है।
क्योंकि राजग में न तो सीटों को लेकर बात बन सकी है और न सहयोगी दल लोजपा की मांगों को पूरा करने की दिशा में कोई ठोस समाधान निकाला गया है। हालांकि महागठबंधन को इस लिहाज से झटका लगा है कि प्रेसवार्ता के बीच में ही विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी सीट बंटवारे से नाराज हो गए और तेजस्वी के खिलाफ बयानबाजी की। हो सकता है मुकेश साहनी तीसरा मोर्चा में शामिल हो सकते हैं। इस बीच लोजपा ने बड़ा दांव चलते हुए अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसला लिया है। अब बिहार की सियासी लड़ाई क्या रूप लेगी, यह देखना दिलचस्प होगा। दरअसल, बिहार के चुनाव में सीटों के विवाद को सुलझाना बहुत जटिल काम है। मनपसंद सीट, जातीय समीकरण आदि बातों का ध्यान रखकर ही पार्टियां अपनी गोटी चलती हैं।
फिलहाल जो संकेत मिल रहे हैं, उससे छोटे दलों की भूमिका बेहद निर्णायक होगी। चूंकि बिहार राजनीतिक प्रयोग के तौर पर जाना जाता है, लिहाजा यहां उन दलों की अहमियत काफी बढ़ जाती है जो जातीय समीकरण के मामले में ठोस और नियोजित रणनीति के साथ लड़ाई लड़ते हैं। अभी तक साफ-साफ तौर पर महागठबंधन, राजग, तीसरा मोर्चा, बीएसपी और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ही सीधे तौर पर ताल ठोकती दिख रही है। अब देखना है जद (यू), भाजपा और जीतनराम मांझी की हम को कितनी सीटें मिलती है? जब तक सीटों का मुकम्मल बंटवारा नहीं हो जाता तब तक सियासी आकाश में धुंधलका छाया रहेगा। हां, लोजपा ने अपने एकला चलो के निर्णय से जरूर थोड़ा रोमांच ला दिया है।
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