टूट रहा नाता
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। एक-एक कर साथी दल राजग से छिटक रहे हैं।
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शनिवार को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने राजग से नाता तोड़ लिया। नरेन्द्र मोदी जिन दलों के साथ मिलकर सत्ता पर काबिज हुए थे, उनमें से चार सहयोगी दल साथ छोड़कर अलग हो गए हैं। 2018 मार्च में आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) राजग से बाहर हुई। अगस्त में जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती से साथ गठबंधन तोड़ा। 2019 के चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के सहयोगी दल आरएलएसपी के चीफ उपेंद्र कुशवाहा नाता तोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बन गए। कह सकते हैं कि संकट के दौर में भी मजबूती से खड़े रहे सबसे पुराने सारथी भी अब दूर होते जा रहे हैं। 2019 में महाराष्ट्र की सत्ता के लिए भाजपा और शिवसेना की 30 साल की दोस्ती एक झटके में खत्म हो गई थी। वहीं, किसानों के मुद्दे पर अब दूसरी सबसे पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने खुद को मोदी सरकार से अलग कर लिया है।
ऐसे में अब एनडीए का किला दरकता नजर आ रहा है, जो बीजेपी के लिए चिंता का सबब है। बता दें कि शिरोमणी अकाली दल और बीजेपी का साथ 27 साल पुराना है। अकाली दल का कहना है कि सरकार ने किसानों की भावनाओं का आदर करने के बारे में भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी दल शिअद की बात नहीं सुनी। अकाली दल के साथ भाजपा का गठबंधन 1997 में हुआ था। तब से वह राजग का हिस्सा थी। हालांकि शिअद के राजग से अलग होने के पीछे उसकी वोटबैंक की राजनीति है। चूंकि पंजाब की सामाजिक संरचना शुरुआत से कृषक प्रधान की रही है।
और इस कृषि बिल का विरोध कर वह फिर से उस तबके को अपने साथ जोड़ना चाहती है। अगर कोई क्षेत्रीय दल अपने लोकल एजेंडे से मुंह चुराता है या उसे भूलता है तो उसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ता है। अकाली दल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। लिहाजा पार्टी को कृषि विधेयक में तमाम खामियां नजर आई और इस बहाने से उसने राजग से नाता तोड़ लिया। हो सकता है शिअद को इस अलगाव का फायदा मिले और उसका खोया हुआ वोट दोबारा उसकी झोली में आए। मगर राजग को भी कुछ मामलों में सहयोगी दलों के प्रति लचीला रुख अपनाने की महती जरूरत है।
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