सार्थक प्रभावी भाषण
संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वषर्गांठ के ऐतिहासिक अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिया गया भाषण उनके श्रेष्ठतम और प्रभावी भाषणों में से एक था।
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एक ओर उन्होंने आज की वैश्विक परिस्थितियों में भारत के राजनीतिक और आर्थिक महत्त्व को प्रतिपादित किया तो दूसरी ओर वैश्विक संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ के निरंतर शक्तिविहीन होते जाने को लेकर अपनी चिंता भी प्रकट की। वैश्विक समस्याओं के प्रति भारत के दृष्टिकोण को उन्होंने वैश्विक दृष्टिकोण के रूप में प्रतिपादित किया और संयुक्त राष्ट्र से आग्रह किया कि वह भारत को उसका समुचित स्थान प्रदान करे।
उनके कहने का आशय यही था कि अगर विश्व को विनाशक समस्याओं से निपटना है तो संयुक्त राष्ट्र को प्रभावशाली भूमिका निभानी होगी और यह भूमिका वह तब तक नहीं निभा सकता जब तक भारत जैसे दुनिया के सबसे बड़े संघषर्शील और गतिमान लोकतंत्र को अपने ढांचे के अंदर समुचित स्थान प्रदान नहीं करता। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा कि भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को प्राथमिकता दी है और अब वह अपने योगदान को देखते हुए इसमें अपनी व्यापक भूमिका देख रहा है। उन्होंने इस बात की ओर संकेत भी दिया कि विश्व कल्याण की भावना के साथ संयुक्त राष्ट्र का जिस स्वरूप में गठन हुआ था, वह उस समय के हिसाब से ही था, लेकिन आज दुनिया अलग दौर में है। इसलिए तब की और आज की परस्थितियों की तुलना भी नहीं की जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां विश्व की 18 फीसद से ज्यादा जनसंख्या रहती है, जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, अनेक पंथ हैं और अनेक विचारधारा है।
प्रधानमंत्री मोदी का स्पष्ट संकेत था कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए। मोदी ने चीन और पाकिस्तान के प्रति परोक्ष संकेत तो दिए लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की तर्ज पर एक भी अपशब्द नहीं कहा। आतंकवाद की जन्मभूमि पाकिस्तान और वैश्विक समस्याओं के प्रति आंखें मूंदकर अपनी समूची शक्ति को अपने भौगोलिक विस्तार पर केंद्रित कर देने वाले चीन के प्रति मोदी ने जो परोक्ष संकेत दिए वे समझ में आने वाले भी थे और वैश्विक शांति की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण थे। कुल मिलाकर मोदी का यह वक्तव्य भारत में तो याद रखा ही जाएगा; संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश भी इसे विस्मृत नहीं कर पाएंगे।
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