संवाद से बनेगी बात
लद्दाख में भारत-चीन में व्याप्त तनातनी के बीच मास्को में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक से इतर दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों की मुलाकात की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वैश्विक राजनय में इसे अप्रत्याशित भी नहीं माना जा सकता।
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वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर जारी तनाव के बीच दोनों देशों के बीच यह पहला उच्चस्तरीय संवाद था। इसमें भारतीय पक्ष का नेतृत्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कर रहे थे, तो चीन की तरफ से वहां के रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंगी।
वार्ता में भारत ही नहीं, चीन ने भी एक इंच जमीन न छोड़ने की बात की। एलएसी पर घुसपैठ करने वाले चीन के इस दृष्टिकोण के पीछे दो बातें हो सकती हैं। एक तरफ उसके सामने पीछे हटने की स्थिति में अपनी जनता को खुश रखने की मजबूरी छिपी है, तो दूसरी तरफ भारत से बातचीत में सौदेबाजी करने की रणनीति। हालांकि बातचीत से मौजूदा टकराव का कोई समाधान नहीं निकला, लेकिन इस बात पर सहमति बनती दिखी कि दोनों पक्ष आगे ऐसा कोई कदम नहीं उठाएंगे, जिससे पूर्वी लद्दाख में तनाव बढ़े।
अब आशा की जा रही है कि आगामी 10 सितम्बर को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच होने वाली बैठक में मसले के समाधान की दिशा में और प्रगति होगी। इस दृष्टि से दोनों रक्षा मंत्रियों की इस मुलाकात ने भावी बैठक के लिए जमीन तैयार कर दी है। दरअसल, आने वाली सर्दियों से पहले दोनों पक्ष चाहेंगे कि लद्दाख गतिरोध का कोई हल निकल जाए, लेकिन अब तक की स्थिति यही है कि चीन पीछे हटने से इनकार कर चुका है। अगर सर्दी से पहले चीन वहां से नहीं हटता, तो समझा जा सकता है कि उसका इरादा नेक नहीं है।
तब भारत को सैनिक विकल्प के बारे में सोचने पर मजबूर होना पड़ सकता है, लेकिन तथ्य यह भी है कि भारत ने चुशूल सेक्टर में कुछ चोटियों पर नियंत्रण स्थापित कर चीन को दबाव में ला दिया है और वह भारत के इस कदम से अचंभित है। ध्यान देने की बात है कि यह वार्ता इस घटना के बाद ही हुई और वह भी चीन के आग्रह पर। पहली बार भारत इस वार्ता प्रक्रिया में कुछ सौदेबाजी की स्थिति में है। भारत चाहता है कि चीन सैन्य दृष्टि से पैंगोंग झील, गोगरा और देपसांग में अप्रैल की स्थिति बहाल करे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन एलएसी का सम्मान करे और यथास्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश बिल्कुल न करे।
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