सही तालमेल जरूरी

Last Updated 22 Jun 2020 01:11:38 AM IST

कोविड-19 वायरस का प्रसार अब एक डरावने चरण में प्रवेश कर चुका है। सर्वाधिक डरावनी वह अनिश्चतता है जो सामान्य नागरिक से लेकर कोरोना वायरस के नियंत्रण में लगे अभिकरणों तक में सामान्य रूप में व्याप्त है।


सही तालमेल जरूरी

किसी को पता नहीं है कि भविष्य में क्या होने जा रहा है? बीच-बीच में अटकलें और अनुमान जरूर सामने आ जाते हैं कि इस सितम्बर या अक्टूबर तक महामारी का प्रसार नियंत्रण में आ जाएगा, लेकिन प्रामाणिक तौर पर कुछ भी सामने नहीं आ पा रहा है।

कभी-कभी ऐसी खबरें भी सुनाई दे जाती हैं कि कोरोना नियंत्रक दवा जल्दी ही आने वाली है। लेकिन इस तरह की खबरें भी किसी परिणति तक पहुंचने के पहले ही दम तोड़ जाती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अपने स्तर पर पूरा प्रयास कर रही हैं। मगर एक तथ्य जो प्रखरता से सामने आ रहा वह यह है कि सरकारें भी हताशा की शिकार हो रहीं हैं। उनमें आत्मविास का क्षय परिलक्षित हो रहा है। यह आशंका भी जताई गई थी कि लॉकडाउन खोलने के बाद कोरोना वायरस के प्रसार में तेजी आएगी वह सही साबित हो रही है।

अब सभी सरकारों को इस दुविधापूर्ण स्थिति के बीच में तय करना है कि उन्हें आर्थिक-सामाजिक गतिविधियों को भी जारी रखना है और कोरोना के प्रसार पर नियंत्रण भी लगाना है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि आम आदमी के बीच एक जागरूकता आई है और वह अपनी सुरक्षा के उपायों को लेकर सतर्क भी हुआ है। इस सूरत में यह सर्वाधिक जरूरी है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और जनता के बीच एक सुनिश्चित तालमेल हो, एक सुनिश्चित कार्यप्रणाली हो और चिकित्सा सेवाएं किस तरह से कार्य करेंगी इसकी भी एक स्पष्ट रूपरेखा हो। हाल ही में दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच जो विवाद हुआ, वह दुखद था।

दिल्ली सरकार ने आदेश जारी किया था कि हल्के लक्षणों वाले रोगी घर पर ही क्वारंटीन में रहेंगे। इस आदेश के पीछे सरकार की मजबूरी थी कि उसके अस्पतालों की क्षमता तेजी से चुक रही है। इस बात को उपराज्यपाल ने नजरअंदाज कर दिया था। अच्छा हुआ कि उपराज्यपाल ने अपना आदेश वापस ले लिया। आगे इस तरह की स्थिति पैदा नहीं होनी चाहिए। क्योंकि इससे जनता के बीच भ्रम पैदा होता है।



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