टकराव के सबक
निस्संदेह, चीनी सेना का व्यवहार अस्वीकार्य है। आप बातचीत के साथ आक्रामकता बरतते हैं, धोखे से हमला करते हैं, इससे शर्मनाक व्यवहार कुछ हो ही नहीं सकता।
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हमारे वीर जवानों ने अपना बलिदान दिया जिसके कारण देश में गम और गुस्से का माहौल है। चूंकि चीन के साथ सीमा विवाद होते हुए भी 1975 के बाद कभी ऐसी हिंसक झड़प नहीं हुई जिससे हमारे जवान टकराव की तैयारी के साथ उनके सामने जाएं। दिन में बात तनाव कम करने की और रात में गलवान नदी के पीपी 14 पर कब्जा करने के लिए तारबंदी की धोखेबाजी..ऐसा व्यवहार है जैसा आधुनिक युग में चीन जैसा चरित्रहीन देश ही कर सकता है।
चीन झूठ बोल रहा है कि हमने गलवान घाटी में कोई निर्माण नहीं किया है, उपग्रह से साफ दिख रहा है कि चीन ने ऐसा किया है। जाहिर है, चीन सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्र पर अपनी कमजोर स्थिति को जबरन और धोखेबाजी से सशक्त करना चाहता है। हालांकि समझना भूल होगी कि भारत उनके धोखे में आ गया। ऐसा होता तो डेढ़ महीने से भारतीय सेना वहां उस अवस्था में नहीं रहती।
हां, हमें उम्मीद नहीं थी कि चीनी सेना ऐसी घातक मारामारी पर उतारू हो जाएगी। किंतु हमें इस पर गर्व भी होना चाहिए कि हमारे वीर जवानों ने निहत्थे उनको न केवल कब्जा करने से रोका, बल्कि सीधी भीड़ंत में भारी संख्या में उनको हताहत भी किया। इस तरह चीन को यह षडयंत्र महंगा पड़ गया है। अमेरिका भी अगर मान रहा है कि चीन के कम से कम 35 सैनिक अवश्य मारे गए हैं और काफी संख्या में हताहत हुए हैं, तो चीन क्या कहता है इसका कोई मायने नहीं है। हमारे जवानों ने उन्हें बता दिया है कि वर्तमान भारत से टकराना उनके लिए आत्मघाती साबित होगा। प्रश्न है कि आगे क्या होगा? इस बारे में हमें अतिवादी भावनाओं में बहने से बचना चाहिए।
चीन का एक बड़ा लक्ष्य भारत को विवाद एवं तनाव में उलझा कर रखना है ताकि यह किसी तरह महाशक्ति न बनने पाए और एशिया का नेतृत्व इसके हाथों में न आ जाए। किंतु चीन ने बहुत बड़ी गलती कर दी है। चीन ने केवल भारत का नहीं, बल्कि विश्व समुदाय का भी भरोसा तोड़ा है। इसमें उसे किसी का साथ नहीं मिल सकता। उसका पूरा झूठ विश्व के सामने है। भारत का पूरा व्यवहार वही है, जो परिपक्व और सक्षम राष्ट्र का होना चाहिए। लेकिन जरूरी बात यह कि नेतागण अनावश्यक सवाल पूछकर या सरकार को कठघरे में खड़ा करने के बयान से माहौल खराब न करें।
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