एकजुटता को सराहा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इक्कीस राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और उपराज्यपालों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस संक्रमण और अनलॉक-एक पर चर्चा करते हुए कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों को सामने रखा।
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उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भविष्य में जब कभी भारत की कोरोना के विरुद्ध लड़ाई का अध्ययन होगा, तो यह दौर इसलिए भी याद किया जाएगा कि कैसे इस दौरान हमने साथ मिलकर काम किया और सहकारी या सहयोगात्मक संघवाद का सर्वोत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया।
भारतीय संविधान में सहकारी संघवाद की व्यापक परिकल्पना की गई है। इस अवधारणा के अंतर्गत केंद्र और राज्य एक संबंध स्थापित करते हुए एक दूसरे के सहयोग से अपनी समस्याओं का निराकरण करते हैं। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सहकारी संघवाद भारतीय संविधान की मूल आत्मा है, जैसे नागरिकों का मौलिक अधिकार है। जाहिर है इसे संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। लेकिन विडंबना रही है कि आजादी के बाद केंद्र की कांग्रेसी सरकारों ने इस सहकारी संघीय ढांचे पर लगातार कुठाराघात किया।
1947 से 1977 के बीच 44 बार राज्यों में राष्ट्रपति शासन थोपने के उदाहरण मिलते हैं। लेकिन कोरोना काल में यह बात पहली बार प्रमाणित हुई है कि भारत जैसे बहुधर्मी, बहुभाषी और विराट जनसंख्या वाले देश में इकतरफा फैसला कारगर नहीं हो सकता। अगर कोरोना महामारी दूसरे देशों की तरह भारत में उतना विनाशकारी प्रभाव नहीं दिखा पाई तो इसकी बड़ी वजह यह है कि कोरोना वायरस के विरुद्ध केंद्र और राज्यों ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी है और यह लड़ाई अभी जारी है। हालांकि इसके कुछ अपवाद भी रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों ने आग्रह भी किया है कि कोरोना महामारी के विरुद्ध लड़ाई में जरा भी शिथिलता नहीं आनी चाहिए। यह बात सच है कि हम जितनी शीघ्रता से कोरोना को परास्त करेंगे उतनी ही जल्दी हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट सकेगी। हालांकि प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन के बाहर आने के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार का संकेत दिया है। गौरतलब है कि इस साल मई में उर्वरक की बिक्री बीते साल मई की अपेक्षा दोगुनी हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने जो कुछ कहा उसका बहुत स्पष्ट अर्थ है कि कोरोना को पराजित करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच और अधिक समझदारी और आपसी समन्वय स्थापित करना होगा।
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