अनावश्यक आक्रामकता
भारत की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए नेपाली संसद के निम्न सदन प्रतिनिधि सभा ने अपने देश के विवादित राजनैतिक नक्शे को लेकर पेश किए गए संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया।
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इस मसले पर सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अभूतपूर्व एकता दिखाई दी।
ऐसा लगता है मानो विवादित इलाके लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को सत्तासीन नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रवाद का मुद्दा बना लिया है। यही वजह है कि विपक्षी नेपाली कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता पार्टी-नेपाल और राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को न चाहते हुए भी इस संविधान संशोधन विधेयक का समर्थन करना पड़ा।
इस नये नक्शे में भारतीय इलाके के लिपुलेख, कालापनी और लिम्पियाधुरा को नेपाल ने अपने क्षेत्र में दिखाया है। नेपाल की ओर से यह अनावश्यक आक्रामक तेवर उस समय सामने आया जब भारत ने जम्म-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद अपना नया नक्शा जारी किया था। घरेलू मोच्रे पर लगातार राजनीतिक विरोधों का सामना कर रही नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली की सरकार ने इस पर आपत्ति व्यक्त की थी। नेपाली संसद ने सीमा संबंधी अपने दावे पर जोर देने के लिए राजनैतिक नक्शे को लेकर जो संविधान संशोधन विधेयक पारित किया है, उसके आधार पर नेपाल के क्षेत्रफल में 335 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हो रहा है। नेपाल की इस कार्रवाई का भारत ने बहुत ही संयम तरीके से प्रतिवाद किया है।
विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह विधेयक पास करना तर्कसंगत नहीं है और न ही इसका कोई ऐतिहासिक आधार है। यह हमारे दोनों देशों के सीमा विवाद के आपसी बातचीत के सिद्धांतों का भी उल्लंघन है। जाहिर है कोई देश एकतरफा कार्रवाई करते हुए किसी दूसरे देश के इलाके को अपने राजनीतिक नक्शे में शामिल कर ले तो उसके दावे की वैधानिकता पुष्ट नहीं हो जाएगी। यह बात नेपाली प्रधानमंत्री को समझ में आनी चाहिए।
ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच युद्धोपरांत 1816 में सुगौली की संधि हुई थी, जिसके तहत नेपाल ने काली नदी के पश्चिमी भूभाग पर अपना दावा छोड़ दिया था। नदी के पूर्व का भाग नेपाल का हिस्सा था। विवादित कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा काली नदी के पश्चिम में आता है। अतीत में नेपाल ने इस क्षेत्र पर कभी आपत्ति नहीं की थी। नेपाल को अपनी अनावश्यक आक्रामकता को छोड़कर बातचीत से विवाद को सुलझाने के लिए पहल करनी चाहिए।
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